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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका २०३५ उ. १ सू०३ पञ्चदशभेदनिरूपणम् ५३५ कृतयुग्मकेन्द्रियाः खलु मदन्त ! कुत उत्पद्यन्ते किं नैरविकेभ्यः इत्यादि पूर्वत्रदेव प्रश्नः, उत्तरमाह - 'उच्चाओ तहेव' उपपात एतेषां तथैव पूर्वोक्तव देव ज्ञातव्यः 'परिमाणं बारस वा संखेज्जा वा, असंखेज्जा वा, अनंता वा उवज्जंति' योजकृतयुग्मैकेन्द्रियाणां परिमाणं द्वादश वा संख्याता वा असंख्याता वा अनन्तावत्पद्यन्ते । 'सेसं तहेव जाव अनंतखुतो' शेषं परिमाणातिरिक्तं सर्व तथैव यावत् अनन्तकृत्वः ५ । ' तेओगतेओग एर्गिदियाणं भंते । कथोर्हितो उति' योजत्रयोजै केन्द्रियाः खलु भदन्त ! कुन उत्पद्यन्ते किं नेरयिकेभ्यः भदन्त ! ज्योज कृतयुग्म राशिप्रमित एकेन्द्रिय जीव किस स्थान विशेष से आकर के उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरमिकों में से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा तिर्यग्योनिकों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? अथवा मनुष्यों में से आकर के उत्पन्न होते ? अथवा देवों में से आकर के उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहने हैं- 'उववाओ तहेव' हे गौतम! इनका उपपाद पूर्व के जैसे ही जानना चाहिये। 'परिमाणं बारस वा संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अनंता वा उववज्जंति' ये ज्योज कृतयुग्म रूप एकेन्द्रिय जीव एक समय में १२ अथवा संख्यात अथवा असंख्यात अथवा अनन्त उत्पन्न होते हैं । 'सेस' नहेब जाव अनंत खुत्तो' परिमाण कथन से अतिरिक्त और सब कथन 'वे अनन्तवार उत्पन्न हो चुके हैं' यहां तकका यहां पर कह लेना चाहिये । 'तेओग तेओग एगिंदियाणं भंते! कओहिंतो उववज्जति 'हे भदन्त ! ज्योज ચૈાજ કૃતયુગ્મ રાશિવાળા એકેન્દ્રિય જીÀા કયા સ્થાન વિશેષથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? શું તેએ નૈયિકામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા તિય થયેાનિકામાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા મનુષ્યમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે? આ प्रश्नना उत्तरमां प्रभुश्री गौतमस्वामीने हे छे - 'उवबाओ तद्देव' डे गौतम ! तेमोनो उपयात पडेला उद्या प्रमाणे समभवेो, 'परिमाणं बारख वा स खेज्जा वा, अस खेज्जा वा अणता वा उववज्जति' यतयुग्म ३५ थोड ઇન્દ્રિયવાળા જીવા એક સમયમાં ૧૨ ખાર અથવા સખ્યાત અથવા અસખ્યાત अथवा अनंत उत्पन्न थाय छे. 'सेस' तदेव जाव अनंतखुत्तो' परिभाणुना उथन શિવાયનું માકીનું સઘળું કથન “તેએ અનંતવાર ઉત્પન્ન થઈ ચૂકયા છે,’ मारता सुधीनु अथन गाडियां वुले 'तेओग तेओग पगिंदियाणं भवे ! कोहि तो उबवण्जंति' हे भगवन्नयन मेन्द्रिय लव या स्थान શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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