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________________ भगवती सूत्रे समोपपन्नाः ते समकमेव प्रास्थापयन् समकमेव न्यस्थापयन चेति १ । 'तत्थ णं जे ते समाउया विसमोववन्नगा तेणं पात्र कम्मं समायं पट्टविंसु विसमायं निर्विसु' तत्र ये खलु समायुषो विषमोपपन्नाः समकालायुष्कोदया विषमता परभवोत्पन्नाः मरणकालवैषम्यात् ते खलु समकं प्रास्थापयन् आयुष्कक मं विशेषोदयसंपाद्यत्वात् पापकर्मवेदनविशेषस्य, विषमकं विषमतया न्यस्थापयन् मरणवैषम्येण पापकर्मवेदन विशेषस्य विषमतया निष्ठा संभवादिति द्वितीयः २ | तथा 'तत्थ णं जे ते विसमाउया समोववन्नगा तेणं पाव कम्मं विसमायं पर्वसु समायं निट्टर्विस' तत्र खलु ये जीवा विषमकालायुष्कोदयाः समकालमवान्तरोत्पत्तयः ते खलु जीवाः विषमं प्रास्थापयन् समकं न्यस्थापयन् निविसु' इनमें जो जीव समान काल में आयुष के उदयवाले होते हैं और समान समय में परभव में उत्पन्न हुए होते हैं ऐसे वे जीव एक ही काल में तो पापकर्म का भोगना प्रारम्भ करते हैं और उसका अन्त भी एक ही काल में - साथ-साथ करते हैं१ । 'तत्थ णं जे ते समाज्या विसमोवन्नगा तेणं पावं कम्म समायं पट्टविसु विसमायं निट्टर्विसु' तथाजो जीव समान आयुष के उदद्यवाले होते हैं और भिन्न- २ काल में परभव में जन्मे हुए होते हैं- ऐसे वे जीव पापकर्म को भोगने का प्रारम्भ एक ही साथ करते हैं पर उसका अन्त भिन्न- २ समय में करते हैं२ । तथा - 'तत्थ णं जे ते विसमाउया समोववन्नगा तेणं पावं कम्मं विसमायं समायं निविखु३' जो जीव भिन्न-भिन्न समय में आयुष के वाले होते हैं और साथ-साथ में परभव में उत्पन्न हुए होते हैं वे जीव 'पावं कम्मं विसमायं पटुविसु समायं निविंसु' पापकर्म को भोगने થયેલા હાય છે, એવા તે જીવા એક જ કાળમાં તે પાપકમ ભાગવવાના પ્રારભ रे छे भने तेनेो मतया भेडअम मेड साथै रे छे. १ तत्थ णं जे ते समाज्या विसमोववन्नगा तेण पाव कम्म समायं पटुविसु विसमाय निवि सु' तथा ने वो समान आयुष्यना उध्यवाजा होय छे, भने नुहा જુદા કાળમાં પરભવમાં જન્મેલા હાય છે. એવા તે જીવા પાપકમ લેગવવાના પ્રારભ એકી સાથે કરે છે, પરંતુ તેના અત જુદા-જુદા સમયમાં કરે છે. तथा 'तत्थ णं जे ते विसमाज्या समोववन्नगा तेण पाव कम्म विसमायं पट्टविसु समाय' निट्टविसुं३' ने व गुहा मुद्दा समयमां आयुष्यना उदयवाजा होय छे, ते वो 'पाव' कम्म विस्रमायं पटुविसु समाय निदुविसु ४' पा ક્રમ' ભાગવવાના પ્રારંભ જુદા-જુદા સમયમાં કરે છે, પરંતુ તેના અંત એકી २८ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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