________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३४ अ. श.१ सू०६ असूक्ष्मपृथ्विकायिकोत्पत्तिः ६१३ पौरस्त्ये-पूर्वस्मिन् चरमान्ते समवहताः पाश्चात्ये-पश्चिमें चरमान्ते उपपातयितव्याः सर्वे अपर्याप्त सक्षमपृथिवीकायिकत आरभ्य पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकान्ता इति । 'अपज्जत मुहुमपुढवीकाइए णं भंते !' अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिका खलु भदन्त ! 'लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' लोकस्य पौरस्त्ये पूर्वचरमान्ते समवहतो मारणान्तिकसमुद्घातं कृतवान् । 'समोहणित्ता जे भविए लोगस्स उत्तरिल्ले चरिमंते अपज्जत मुहुमपुढवीकाइयत्ताए उवज्जित्तए से णं भंते !' समवहत्य यो भन्यो लोकस्योत्तरे चरमान्ते अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकतया समुत्पत्तुम्, स खलु भदन्त ! कियत्सामयिकेन विग्रहेणोत्पधेतेति प्रश्नः । उत्तरमाह-एवं जहेब' इत्यादि । 'एवं जहा पुरथिमिलले चरिमंते समोहओ' एवं में समवहत हुए जीवों को पश्चिम चरमान्त में उत्पादित कर लेना चाहिये । अर्थात् समस्त अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक से लेकर पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकाधिक तकके एकेन्द्रिय जीवों का पूर्वोक्त जीवों के जैसा ही उत्पाद पूर्वचरमान्त से पश्चिम चरमान्त में कर लेना चाहिये ।।
'अपजत्त सुहमपुढवीकाइए of भंते ! 'हे भदन्त ! जो अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीव 'लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहणिसा० अपज्जत्त सुहुमपुढवीकाइयत्ताए उवधज्जित्तए से ण भंते !' लोकके पूर्वचरमान्त में मारणान्तिकममुद्धात करके मरा और मरकर वह लोकके उत्तर चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक रूपसे उत्पन्न होने के योग्य हुआ तो हे भदन्त ! ऐसा वह जीव वहां कितने समयवाले विग्नह से उत्पन्न होता हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एवं जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहओ दाहिणिल्ले चरिઉપાદ પશ્ચિમ ચરમાન્તમાં ઉત્પન્ન થવાના સંબંધમાં કથન કહી લેવું જોઈએ. અર્થાત્ સઘળા અપર્યાપ્તક સૂમ પૃથિવીકાયિકથી લઈને પર્યાપ્ત સૂક્ષમ વનસ્પતિકાયિક સુધીના એકેન્દ્રિય જીને પહેલા કહેલ ની જેમ જ પૂર્વ, ચરમાન્તથી પશ્ચિમચરમાતમાં ઉત્પાદ કહી લે.
जयजत्त सुहमपुढवीकाइएण भंते ! सावन रे ५५र्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीय
'लोगस पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए समोहणित्ता० अपज्जत्त सहमपढवी. काइयत्ताए उववज्जित्तए से ण भंते !' सन पू यरमान्तमां मारान्ति: સમુઘાત કરીને મરણ પામે અને મરણ પામીને તે લેકના ઉત્તર ચરમાન્તમાં અપર્યાપ્ત સૂફમ પૃથ્વીકાયિક પણાથી ઉત્પન્ન થવાને ચગ્ય હેય તે હે ભગવાન એ તે જીવ ત્યાં કેટલા સમયવાળી વિગ્રહગતિથી ઉત્પન્ન થાય છે ? આ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ-'एव जहा पुरथिमिल्ले चरिमंते ! समोहओ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭