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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३४ अ. श.१ १०६ असूक्ष्मपृथ्विकायिकात्पत्तिः ५ विग्रहस्तु द्विसामयिको वा, त्रिसामयिको वा, चतुःसामयिको वा, मणितव्यो न तु एकसामयिकः दिगन्ताद् दिगन्ते गमनादिति ॥ ___ 'अपज्जत्त मुहुमपुढवीकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समो. हए' अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकः खलु भदन्त ! लोकस्य पौरस्त्ये पूर्वस्मिन् चरमान्ते समवहतो-मारणान्तिकसमुद्घातं कृतवान्, 'समोहणित्ता जे भविए लोगस्स पच्चस्थिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्त सुहुमपुढवीकाइयत्ताए उक्वज्जित्तए' समवहत्य-मारणान्तिकसमुदघातं कृत्वा यो भव्यो लोकस्य पाश्चात्ये-पत्रिमे चरमान्ते अपर्याप्त मूक्ष्मपृथिवीकायिकतया समुत्पत्तुम्, 'से भंते ! कइसमइएणं विग्गणं उववज्जेज्जा' स खलु भदन्त ! कतिसामयिकेन विप्रहेण समुत्पधेतेति मश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'एगसमइएण या, है ऐसा कथन करना चाहिये । एकसमयवाले विग्रह से उत्पाद होता है ऐसा नहीं कहना चाहिये क्योंकि इनका एक दिगन्त से दूसरे दिगन्त में गमन होता है। 'अपज्जत्तसुहमपुढवीकाइए णं भंते ! लोगस्स पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' हे भदन्त ! कोई अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक जीव लोकके पूर्वचरमान्त में मरण समुद्घात से मरा और 'समोहणित्ता जे भविए लोगस्स पच्चथिमिल्ले चरिमंते अपज्जत्त सुहमपुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए' 'मरण समुद्घात कर वह लोकके पाश्चात्य चरमान्त में अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक रूपसे उत्पन्न होने के योग्य हुआ 'से भंते! कइ समइएणं विग्गहेणं उववज्जेज्जा' हे भदन्त ! ऐसा वह जीव कितने समय वाले विग्रह से वहां उत्पन्न होता है उत्तर में प्रभुश्री અથવા ચાર સમયવાળી વિગ્રહગતિથી થાય છે. આ પ્રમાણેનું કથન કહેવું જોઈએ. એક સમયવાળી વિગ્રહગતિથી ઉત્પાદ થાય છે. તેમ કહેવું નહીં. भ-तमान मे हाथी भी शाम गमन थाय छे. 'अपज्जच सुहम पुढवीकाइएण भते ! लोगस्प्त पुरथिमिल्ले चरिमंते समोहए' 3 सप ४ અપર્યાપ્તક સૂપ પૃથ્વીકાયિક જીવ લોકના પૂર્વચરમાતમાં મરણ સમુદઘાત शन भ२९] पामे. अने, 'समोह णित्ता जे भविए लोगस्स पच्चस्थिमिल्ले चरि मंते ! अपज्जत्त सहुमपुढवीकाइयत्ताए उववजित्तए' भ२ समुद्धात शने त લેકના પશ્ચિમ ચરમાન્તમાં અપર્યાપ્તક સૂક્ષમ પૃથ્વીકાયિક પણાથી ઉત્પન્ન थपाने योग्य जाय तो 'से ण भते! कइसमइएण विग्गहेण उववज्जेज्जा' ભગવદ્ એ તે જીવ કેટલા સમયવાળી વિગ્રહગતિથી ત્યાં ઉત્પન્ન થાય છે? શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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