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________________ भगवतीसूत्रे कियत्पर्यन्तानामुपपातो व्यक्तव्यस्तत्राह - 'जाब सुडुमवणरसइकाइओ पज्जतओ, सुहुमवणस्सइकाइए पज्जतएस चैव यावद सूक्ष्मवनस्पतिकायिकः पर्याप्तकः सूक्ष्म वनस्पतिकायिकेषु पर्याप्त केष्वेव, यावत् पदेन पर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकत आरभ्यापर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकान्ताः संगृह्यन्ते । तथा च पर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकत आरभ्य अपर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिका विकान्तानामुपपातः, अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिकत आरभ्य पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकान्तेषु द्वादश स्थानेषु वर्णनीय इति । तत्र - 'सव्वेसि दुसइओ तिसमहओ चउसमइओ विग्गहो माणि roat' सर्वेषां पर्याप्त सूक्ष्मपृथिव्यादि पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकायिकान्तानां દાઃ में समवहत हुए जीव को दक्षिण चरमान्त में उत्पादित कर लेना चाहिये 'जाव सुमवणस्सइकाइओ पज्जतओ सुहुम बणस्सहकाइएस पज्जतएस' और यह उत्पाद कथन यावत् पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक जीव पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिकों में उत्पन्न होता है, यहां तक कहना चाहिये। यहां याबस्पद से पर्याप्त सूक्ष्म पृथिवीकायिक से लेकर अपर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकाधिक तकका सब कथन ग्रहीत हुआ है। तथा च पर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकायिक से लेकर अपर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतिकायिक तक के जीवों का उपपाद अपर्याप्त सूक्ष्मपृथिवीकाfor से लेकर पर्याप्त सूक्ष्मवनस्पतिकाधिक तकके जीवों में १२ स्थानों में वर्णित कर लेना चाहिये । इनमें 'सन्वेसिं दुसमइओ तिसमइओ, चउसमइओ विग्गहो भाणियन्बो' सबका दो समयवाले अथवा तीनसमयवाले अथवा चारसमयवाले विग्रह से उत्पाद होता સમ્રુધાત કરેલ જીવને દક્ષિણુ ચરમાન્તમાં ઉત્પન્ન થવાના સંબંધમાં થન श्री बेवु लेह. 'जाव सुहुम वणस्थ इकाइओ पज्जत्तओ सुहुमवणस्स इकाइएस पज्जत्तपसु' मने या उत्पाद संधी उथन पर्याप्त सूक्ष्म वनस्पतियिः भवे પર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિકામાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ કથન સુધીનું કહેવુ ોઈએ. અહિયાં યાવપદથી પર્યાસ સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિકથી લઈને અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિક સુધીનું સઘળુ કથન ગ્રહણ થયેલ છે. તથા પદ્મસ સૂક્ષ્મ પૃથ્વીકાયિકથી લઈને અપર્યાપ્ત સૂક્ષ્મ વનસ્પતિકાયિક સુધીના જીવાના સબંધમાં ૧૨ મારે સ્થાનામાં વર્ણન કરી લેવુ. જોઈ એ. તેમાં 'सम्बेसि दुसमइओ तिसमइओ चउसमइओ विग्गहो भाणियन्वो' सघजाना ઉત્પાદ એ સમયવાળી વિગ્રહગતિથી અથવા ત્રણુ સમયવાળી વિગ્રહગતિથી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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