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________________ ११२ मगवती 'नो मेरझ्याउयं पकरेंति' नो नैरयिकायुष्क प्रकुर्वन्ति 'णो तिरिक्ख०' नो तिर्यग्योनिकायुष्क प्रकुर्वन्ति णो मणुस्साउयं०' नो मनुष्यायुष्क प्रकुर्वन्ति 'जो देवाउयं पकरेंति' नो देवायुक प्रकुर्वन्ति 'अकिरियावाई अन्नाणियवाई घेणइयवाई चउन्विहं पि पकरेंति' अक्रियावादिनोऽज्ञानिकवादिनो वैनयिक वादिमश्च पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः कृष्ण लेश्यावन्त चतुर्विधं चतुःप्रकारमपि नार. कतिर्यग्मनुष्यदेवायुष्कं प्रकुर्वन्तीति भावः । 'जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सा नि यथा कृष्णलेश्याः पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका स्तथैव नीललेश्या अपि कापोतिक लेश्या अपि पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिका वक्तव्याः, तथा च क्रियावादि पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिका न नारकायुष्क न तिर्यग्योनिकायुष्कन मनुष्यायुष्कन है-'गोयमा ! नो नेरड्याउयंपकरेंति, नो तिरिक्खाउयं पकरेंति 'हे गौतम ! कृष्णलेश्यावाले क्रियावादी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक न नैरयिक आयुका बन्ध करते हैं, न तिर्यगायु का बन्ध करते हैं, 'नो मणुस्साउयं परेंति' न मनुष्यायु का बन्ध करते हैं, 'णो देवाउय पकरेंति' और न देवायु का बंध करते हैं। 'अकिरियावाई, अन्नाणियवाई, वेणइयवाई, चाविहं पि पकरेंति' अक्रियावादी, अज्ञानिकवादी और वैनथिकवादी कष्णलेश्यावाले पंञ्चेन्द्रिय तियञ्च चारों प्रकारकी आयु का बंध करते हैं। 'जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सा वि काउलेस्सा वि' जिस प्रकार से कृष्णलेश्यावाले पचेन्द्रियतिर्यक् कहे गये हैं उसी प्रकार से नील लेश्या वाले पंचेन्द्रिय तियञ्च एवं कापोतिकलेश्यावाले भी कहने चाहिये अर्थात् क्रियावादी पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च, न नारकायुष्क का बन्ध करते हैं, न तिर्य गायुष्क का बन्ध करते हैं, न मनुष्यायुष्क का बन्ध करते हैं और न स्वामीन छ -'गोयमा ! नो नेरइयाउय पकरे ति नो तिरिक्खजोणियाउय पकरें ति' ३ गौतम ! वेश्यावायाही पथेन्द्रिय तिय य । નારકોના આયનો બંધ કરતા નથી. તથા તિર્યંચ આયુને બંધ કરતા નથી 'नो मणुस्साउय पकरें ति' मनुष्य मायुने। ५५ मध २ता नथी. 'णो देवाय पकरें ति तथा वायुना ५ ते मे मरता नथी. 'अकिरियावाई, अन्नाणियवाई वेणइयवाई, चउव्विहं पि पकरे'ति' मठियावाही अज्ञानवाही भने वनयि:વાદી કૃષ્ણલેશ્યાવાળા પંચેન્દ્રિય તિયચ ચારે પ્રકારના આયુનો બંધ કરે છે. 'जहा कण्हलेस्सा एवं नीललेस्सा वि काउलेस्सा वि' के प्रमाणे वेश्यावामा પંચેન્દ્રિય તિર્યંચોનું કથન કર્યું છે, એ જ પ્રમાણે નીલલેશ્યાવાળા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ અને કાપડિકલેશ્યાવાળા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચનું કથન પણ કરવું જોઈએ અર્થાત નારકાયને બંધ કરતા નથી, તિય ચઆયુને પણ બંધ કરતા નથી. મનુષ્ય આયને પણ બંધ કરતા નથી. તથા દેવ આયુને પણ બંધ કરતા નથી. કેમ કે શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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