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________________ भगवतीसूत्रे जीवाः क्रियावादिनः किं नैरयिकापुष्कं प्रकुर्वन्ति अथवा तिर्यग्योनिकायुष्क प्रकुर्वन्ति अथवा मनुष्यायुष्क प्रकुर्वन्ति यद्वा देवायुष्क प्रकुर्वन्तीत्येवं प्रकारेण प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो नेरइयाउयं पकरेंति' नो नैरयिकायुष्क प्रकुर्वन्ति तेजो. लेश्याः क्रियावादिनः 'नो तिरिक्ख जोणियाउयं पकरेंति' नो तिर्यग्धोनिकायुष्क प्रर्वन्ति, किन्तु 'मणुस्साउयं पकरें ति' मनुष्यायुष्क प्रकुर्वन्ति । 'देवाउयं पि पकरेंति' देवायुष्कमपि प्रकुर्वन्ति । 'जइ देवाउयं पकरें ति' यदि तेजोलेश्याः क्रियावादिनो जीवा देवसम्बन्धि आयुष्क प्रकुर्वन्ति तदा किं भवनवासि देवायुष्क पकुन्ति यावत् वैमानिकदेवायुष्क प्रकुर्वन्तीति प्रश्ना, उत्तरमाह-'तहेव' तथैव यथैव क्रियावादिजीवानां देवादौ आयुर्वन्धो निरूपित स्तथैव तेजोलेश्य जीव जो की क्रियावादी है, वे क्या नैरयिकायुष्क का बन्ध करते हैं ? अथवा तिर्यरयोनिक की आयुका बन्ध करते हैं ? अथवा मनुष्य आयु का बन्ध करते हैं ? अथवा देवायु का बन्ध करते हैं इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! नो नेरड्याउयं पकरेंति' हे गौतम ! वे नैरयिक आयुका बन्ध नहीं करते हैं 'नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति' तिर्यग्योनिक आयुका बन्ध नहीं करते हैं किन्तु वे 'मणुस्साउयं पकरेंति, देवाउयंपि पकरेंति' मनुष्य आयुका बन्ध करते हैं और देवायु का भी बन्धकरते हैं। 'जइ देवाउयं पकरेंति' यदि वे तेजोलेश्यावाले क्रियावादी जीव देवायुका बन्ध करते हैं तो क्या वे भवनवासि देखायु का बन्ध करते हैं ? या यावत् वैमानिक देवायु का बन्ध करते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'तहेव' हे गौतम ! जिस प्रकार से क्रियावादी जीवों કિયાવાદી હોય છે. તેઓ શું નૈરયિક આયુષ્યને બંધ કરે છે અથવા તિયચનિક આયુને બંધ કરે છે? અથવા મનુષ્ય આયુને બંધ કરે છે? કે દેવ આને બંધ કરે છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'गोयमा ! नो नेरइयाउयं पकरें ति' गौतम! तमाथि मायुध्यन। म ४२ता नथी. 'नो तिरिक्खजोणियाउयं पकरेंति' तिय योनि मायुध्यन। म ३२ता नथी. परंतु त्या 'मणुस्साउय पकरें ति, देवाउयपि पकरेंति' भनुष्य मायुनी ५ ४३ छे. भने ३१ आयुनो ५१ मध घरे छे. 'जइ देवाय पकरेति' तनवेश्यापामा मायुनी मध ४२, तो शु तथा ભવનવાસી દેવ આયુને બંધ કરે છે અથવા યાવત્ વૈમાનિક દેય આયુને सय १३ १ मा प्रशन उत्तरमा प्रमुश्री ४७ छ है-'तहेव' है गीतम। જે પ્રમાણે ક્રિયાવાદી જીવને વૈમાનિક દેવ આયુને બંધ થવાના સંબંધમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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