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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श०३० ३.१ २०२ आयुर्वन्धनिरूपणम् स्यर्थः । 'नो तिरिकखनोणियाउयं पकरेंति' नो-न वा तिर्यग्योनिकायुष्क पकुवन्ति किन्तु 'मणुस्साउयं पर ति देवाउयं पकरेंति' मनु यायुष्क प्रकुर्वन्ति, देवायुष्कमपि कुर्वन्तीत्युत्तरम् । 'जइ देवाउथं पकरेंति' यदि क्रियावादिनो जीवा देवायुष्क प्रकुर्वन्ति तदा 'किं भवणवासि देवाउयं पकरें ति जाव वेमाणिय देवाउयं पकरेंति' किं भवनवासिदेवायुष्क प्रकुर्वन्ति यावत् वैमानिकदेवायुष्क मकुर्वन्ति यावत्पदेन वानव्यन्तरज्योतिष्कदेवयोः संग्रहः एषु कतमदायुर्वन्धं प्रकुर्वन्तीति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो भवणवासि देवाउयं पकरेंति' नो भवनवासि देवायुष्क प्रकुर्वन्ति 'णो वाणमंतरदेवाउयं पकरेंति' नो न वा वानव्यन्तरदेवायुष्क प्रकुर्वन्ति' 'णो जोइसियदेवाउयं पकरें ति' नो न वा ज्योतिष्कदेनायुष्क प्रकुर्वन्ति अपि तु 'वेमाणियदेवाउयं पकरेंति' वैमानिकदेवायुष्क प्रकुर्वन्ति क्रियावादिनो उयं पकरेंति' तिर्यश्चआयु का बन्ध नहीं करते हैं, किन्तु 'मणुस्सायं पि पकरेंति देवाउयं पि पकरेति' मनुष्य आयुका भी बन्ध करते हैं और देवायु का भी बन्ध करते हैं । 'जइ देवा उयं पकरे ति किं भवण. वासिदेवाउयं पकरेंति जाव वेमाणियदेवाउयं पकरें ति' यदि वे देवायु का पन्ध करते हैं तो क्या भवनवासी देवों की आयुका बन्ध करते हैं या यावत् वैमानिक देवों की आयुका धन्ध करते हैं ? यहां यावत् शब्द से वानव्यन्तर और ज्योतिषिक इन दो का ग्रहण हुआ है। उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! णो भवणवासिदेवाउयं पकरें ति णो वाणमं. तर देवाउयं पकरेंति' हे गौतम! क्रियावादी जीव न भवनवासी देवों की आयुका बन्ध करते हैं न वानव्यन्तरदेवों की आयुका बन्ध करते हैं जो जोइसिय देवाउयं पकरेंति' न ज्योतिषिक देवों की आयुका बन्ध करते हैं। अपितु 'धेमाणियावाउयं पकरेंति' वे वैमानिक देवोंकी आयुका बन्ध उय पकरे'ति' तिय" मायुन। म ४२॥ नथी. परंतु 'मणुस्साउयं पकरेंति देवाउयं पकरेंति' मनुष्य आयु। म ४२ छ, भने वायुना मध रेछ. 'जइ देवाउय पकरे'ति कि भवणवासी देवाउय पकरें तिने तमा દેવ આયુને બંધ કરે છે, તે શું તેઓ ભવનવાસી દેવના આયુષ્યને બંધ કરે છે ? યાવત વૈમાનિક દેના આયુષ્યને બંધ કરે છે? અહિયાં યાવત શબ્દથી વાનચત્તર અને જયોતિષ્ક આ બંને ગ્રહણ કરાયા છે. આ પ્રશ્નના उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ - गोंयमा ! णों भवणवासिदेवाउय पकरें तिं णो वाण. मंतरदेवाउय पकरें ति' गौतम ! यावाही मनासिवानी मायुવ્યને બંધ કરતા નથી તથા વાનન્તર દેવેની આયુષ્યને બંધ કરતા નથી. 'णो जोइसिय देवाउय पकरेंति' यति वानी मायुध्यन। म ४२ता नयी શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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