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________________ ६६४ मगवतीस्त्रे पापं कर्म भन्स्यतीत्याकारका प्रथमो भङ्गः१। 'अस्त्थेगइए बंधी बंधइ न पंघिस्सई' अस्त्येककः कश्चिदेकोऽचरमो मनुष्यः पूर्वकाले पापं कर्म अबध्नात् कश्चिदेकोऽचरमो मनुष्यो वर्तमानकाले पापकर्मणो बन्धं करोति अनागतकाले च वधं न करिष्यतीति द्वितीयो भङ्गः २, 'अस्थेगइए बंधी न बंधइ बंधिस्सई' अस्त्येककः कश्चिदेकोऽचरमो मनुष्योऽतीतकाले पापं कर्म अवधनात्, वर्तमानकाले पापं कर्म न बध्नाति, भविष्यकाले पापं कर्म भन्स्यतीति तृतीयो भङ्गः २ इत्येवं क्रमेण प्रथमद्वितीयतृतीयभङ्गा चतुर्थवर्जा भगवता अनुमोदिता इति। 'सलेस्सेगं भंते । अचरिमे मणुस्से' सलेक्यो लेश्यायुक्तोऽचरमो मनुष्यः 'पावं कम्मं कि बंधी पुरछा' पापं कर्म किम् अबध्नात् बध्नाति भन्स्यति ? इत्यादि क्रमेण चतु. का बन्ध करता है और भविष्यत् में भी वह पापकर्म का बन्ध करने वाला होता है। तथा 'अस्थेगइए बंधी, बंधन बंधिस्सह' कोई एक अचरम मनुष्य ऐसा होता है जो भूतकाल में भी पापकर्म का बन्ध कर चुका होता है, वर्तमान में भी वह पापकर्म का बन्ध करता है पर भविष्यत् काल में वह पापकर्म का बन्ध करने वाला नहीं होता है। तथा 'अस्थेगइए बंधी न बंधइ बंधिस्सई' कोई एक अचरम मनुष्य ऐसा होता है जो भूतकाल में पापकर्म का बंध कर चुका होता है, पर वह वर्तमान में पापकर्म का बन्ध नहीं करता है पर भविष्यत् में वह पापकर्म का बंध करनेवाला होता है । इस प्रकार से चतुर्थ भंग वर्जित ये तीन भंग यहां भगवान्ने अनुमोदित किये हैं। 'सलेस्से णं भंते ! अचरिमे मणु से' हे भदन्त ! जो सलेश्य अचरम मनुष्य होता है-वह क्या पूर्वकाल में पापकर्म का बन्ध कर चुका होता है? वर्तमान में वह કર્મને બંધ કરે છે. અને ભવિષ્યમાં પણ તે પાપકર્મને બંધ કરવાને डाय छे. तथा-'अत्थेगइए बधी बंधइ. न बंधिस्सइ' ४ से भयभ मनु. ધ્ય એ હોય છે કે–જે ભૂતકાળમાં પાપ કર્મને બંધ કરી ચુકેલ હોય છે, વર્તમાન કાળમાં પણ તે પાપકર્મનો બંધ કરે છે, પરંતુ ભવિષ્ય म त ५॥५४मना मध ४२वाने हात नथी, तथा-'अत्थेगइए बधी न बंधद्ध, बंधिस्सइ' छिमे४ अय२भ मनुष्य मे। हाय छे -२ भूत. ળમાં પાપકર્મનો બંધ બાંધેલ હોય છે, પણ વર્તમાન કાળમાં તે પાપ કમનો બંધ કરતું નથીપરંતુ ભવિષ્ય કાળમાં પાપ કર્મને બંધ કરવાને હોય છે. આ રીતે ચોથા ભંગને છોડીને આ ત્રણ અંગે અહિયાં ભગવાને समथित छे. 'सलेस्से णं भंते ! अचरिमे मणुस्से है सावन रे सखेश्य અચરમ મનુષ્ય હોય છે, તે શું ભૂતકાળમાં પાપકર્મને બંધ કરી ચુકેલા શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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