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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२६७.९ सू०१ परम्परपर्याप्त कना० पापकर्मबन्धः ६५३
इत्यादि क्रमेण चतुर्भङ्गका प्रश्नः पृच्छया संगृह्यते, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि 'गोयमा' हे गौतम ! कश्चिदेकः परम्परपर्याप्तको नारकः पापं कर्म अबध्नात् बध्नाति भन्स्थतीत्यादि रूपेग यथा परम्परोपपन्नकस्योदेशकः कृतः तेनैव रूपेण परम्परपर्याप्तक नारकादि वैमानिकान्त चतुर्विंशतितमदण्ड केऽपि पापकर्मबन्धवक्तव्यता भणितव्या, एतदाशयेनैव कथितम् -'एवं जहा' इत्यादि, 'एवं जहेच परंपरोक्वन्नएहि उद्देसो तहेव निरवसेसो भाणियों ' एवं यथैव येनैव रूपेण परमरोपपत्रकरुद्देशक स्तथैव तेनैव क्रमेण परम्परपर्याप्त कनारकदण्डकोऽपि क्या पापकर्म का बंध करता है ? भविष्यत् काल में भी क्या वह पाप कर्म का बंध करनेवाला होता है । इत्यादि क्रम से यहां गौतमस्वामीने चार भंगो को लेकर पापकर्म के बंध के सम्बन्ध में प्रश्न किया है। इसके उत्तर में प्रभुश्री गौतमस्वामी से कहते हैं-'गोयमा ! एवं जहेव पर परोत्रचन्नएहिं उद्देलो तहेव निरवसेसो भाणियवा' हे गौतम ! कोई एक परंपरपर्याप्तक नारक ऐसा होता है कि जो पूर्वकाल में पापकर्म का बंधक हुआ है, वर्तमान में भी वह उसका बंधक होता है और भविष्यत् काल में भी वह उस का बन्धक होगा। इत्यादि रूप से जैसा परम्परोपपन्नक का उद्देशक कहा गया है उसीरूप से निरवशेष परम्परपर्याप्तक नारक को लेकर वैमानिकान्त तक के चौबीसों दण्डको में भी पापकर्म के बंध के सम्बन्ध में वक्तव्यता कहनी चाहिये इसी आशय से 'एवं जहेव पर परोक्वनरहिं उद्देसो तहेव निरवसेतो भाणियो' ऐसा सूत्रपाठ कहा गया है। यहां आलापक आदिका કર્મને બંધ કરે છે ? અને ભવિષ્ય કાળમાં પણ તે પાપકર્મને બંધ કરવાને હોય છે? વિગેરે કમથી ગૌતમસ્વામીએ આ વિષયમાં પાપકર્મને બંધ સંબંધી ચાર ભંગાત્મક પ્રશ્ન પ્રભુશ્રીને પૂછે છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रसुश्री गौतम स्वामी ४ छ -'गोयमा ! एवं जहेव परंपरोंववन्नएहि उद्देम्रो तहेव निरवसेसो भाणियो' गौतम! ७४ ५२ ५२ पर्याप्त નારક એવો હોય છે કે-જેણે ભૂતકાળમાં પાપ કર્મને બંધ કર્યો છે. વર્તમાનમાં પણ તે તેને બંધ કરે છે. અને ભવિષ્ય કાળમાં પણ તે તેને બંધ કરશે. વિગેરે પ્રકારથી પરંપરે૫૫નક ના સંબંધમાં જે પ્રમાણેનું કથન ત્રીજા ઉદ્દેશામાં કરવામાં આવ્યું છે, એ જ પ્રમાણે પરંપરપર્યાપ્તક નારક વિગેરેથી લઈને વૈમાનિક સુધીના વીસ દંડકમાં પણ પાપકર્મના બંધના सधमा थन. ४२७ , मे मलिपायथी 'एव जहेव परंपरोववन्नएहिं
શ્રી ભગવતી સૂત્રઃ ૧૬