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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ ३.६ सू०१ प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् ५९ - वकुशो द्विविधो भवति उपकरणशरीरभेदात् तत्र वखपात्राद्युपकरणविभूषानुवर्तनशील उपकरणबकुशः, करचरणनखमुखादि देहावयवविभूषानुवर्ती शरीरबकुशः, स चायं द्विविधोऽपि बकुशपुलाको पञ्चविधो भवति तथा चाह'बउसेणं भंते ! कइविहे पन्नत्ते' बकुशः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते' गौतम ! बकुशः पश्चविधः प्रज्ञप्त इति, 'तं जहा' तद्यथा-'आभोगवउसे अणाभोगवउसे संवुडबउसे असंबुडवउसे-अहासुहुमणामं पंचमे' आभोगवकुशोऽनाभोगवकुशः संवृतबकुशोऽसंहतकुशो यथासक्षमबकुशो नाम पञ्चमः । आमोगः-साधूनामकृत्यमेतत् शरीरोपकरणादि विभूषणमित्येवं ज्ञानं तत्पधानो बकुश आभोगबकुशः, ज्ञात्वा दोषसेवनकारी आभोगवकुश इत्यर्थः । अज्ञात्वा दोषसेवनकारी भावाला होता है वह उपकरण बकुश है जो हाथ, पैर, नख, मुख आदि से देहावयच को विभूषा करने के स्वभाववाला होता है वह शरीर बकुश है इन दोनों प्रकार के बकुश के पांच प्रकार होते हैं-सोही कहा है-'बउसे गं भंते ! कविहे पण्णत्ते' हे भदन्त ! बकुश कितने प्रकार का कहा गया है उत्तर में प्रभुश्री ने कहा है-'गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते' हे गौतम! बकुश पांच प्रकार का कहा गया है 'तं जहा' जैसे-आभोग पकुसे अणाभोगबउसे संबुडव उसे, असंवुडवसे अहासुहुमबउउसे णामं पंचमे' आमोगवकुश अनामोगषकुश, संवृतबकुश असंवृतबकुश और यथा सूक्ष्मवकुश इनमें जो यह जानते हुए भी कि शरीर उपकरण आदि को सुशोभित करना साधुजनों को योग्य नहीं है फिर भी વાના સ્વભાવ વાળે હોય છે, તે ઉપકરણ બકુશ કહેવાય છે. અને હાથ પગ નખ, સંખ, વિગેરે શરીરના અવયની જે શોભા કરવાના સ્વભાવ વાળ હોય છે. તે શરીર બકુશ કહેવાય છે. આ બન્ને પ્રકારના બકુશના પાંચ ભેદ थाय छ. स. मा नीयन सूत्राथी मतावर छ 'बउसेण भंते ! कइविहे पणत्ते' मा सूत्राथी गौतभस्वामी प्रभुश्री ने पूछे छे 2-सावन् । કેટલા પ્રકારના કહયા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે छ -'गोयमा ! पचविहे पन्नत्ते' 3 गौतम ! मधुश पांय मारना या छ 'तं जहा' ते मा प्रभाव छ-'आभोगबकुसे, अणाभोगबउसे संवुडबउसे, असंखुडबऊसे अहासुहुमणामं पंचमे' माले १. मनाला अश२, સંવૃતબકુશ ૩, અસંવૃતબકુશ ૪, અને પાંચમાં યથાસૂમ બકુશ ૫. તેઓમાં જેઓ શરીર, ઉપકરણ વિગેરે ને સુશોભિત કરવા તે સાધુજનને એગ્ય નથી તેમ જાણવા છતાં પણ જેઓ શરીર ઉપકરણુ વિગેરેને સુશોભિત–શોભાવાળા भ०७ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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