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________________ ममेपचन्द्रिका टीका श०२६ उ.१ सू०३ ज्ञानावरणीयकर्माश्रित्य बन्घस्वरूपम् ५८३ जीपस्य चतुर्यों भङ्गः ४ । एवम् अंग्रेऽपि भगा विविच्च वक्तव्याः५ 'अलेस्से बरिमो मंगो' अलेश्ये-लेश्यारहिते जीवे चरमश्चतुर्थों भङ्ग एव भवति अलेश्याम शैलेशीगतः सिद्धश्च भवति तयोर्वर्तमानकालानागतकालयोरायुषोऽभवन्धकस्याः दिति । 'कण्हपविखएणं पुच्छा' कृष्णपाक्षिकः खलु भदन्त ! आयुष्कं कर्म किम् अवघ्नात् बध्नाति भन्स्यति१, अबध्नात् बध्नाति न भन्स्यति२, अबध्नान न बध्नाति भन्स्यति३, अवधनात् न बध्नाति न भन्स्यति ४ इत्येवं रूपेण चतु. है, इसलिये वह पुन:-आयुकर्म का बन्धक नहीं होता है। 'सलेस्से जाय सुक्कलेस्से चतारि भंगा' लेश्यावाले जीव में यावत् शुक्ल लेश्यावाले जीव में चार भंग होते हैं, यहां यावत्पद से कृष्ण लेश्या वाले आदि जीवों का ग्रहण हुआ है, जो मोक्ष नहीं जावेगा उसकी अपेक्षा से पथम भंग है और जो चरमशरीर रूप से उत्पन्न होगा उसकी अपेक्षा से द्वितीय भंग है, अबन्धकाल में तृतीय भंग है और जिसके चरम शरीर मोजूद है ऐसे सलेश्य जीव की अपेक्षा से अंतिम भंग है। इसी प्रकार से आगे भी भंगों का विवेचन करना चाहिये, 'अलेक्से चरिमो' जो जीव लेश्या रहित होता है उसके चतुर्थ भंग ही होता है-अलेश्य शैलेशीगत जीव और सिद्ध जीव होता है, इनके वर्तमान काल में और अनागत काल में आयुकर्म का बन्ध नहीं होता है। 'कण्हपक्खिएणं पुच्छा' कृष्णपाक्षिक जीव को लेकर गौतम ने आयुष्क कर्म के बन्ध करने के विषय में ऐसा ही चार भंगोवाला प्रश्न किया है-जैसे-हे भदन्त ! कृष्णपाक्षिक जीव ने क्या भूतकाल में आयु ભંગ કહેલ છે. અબંધ કાળમાં ત્રીજો ભંગ કહ્યો છે. અને જેને ચરમશરીર કાયમ છે. એવા વેશ્યાવાળા ની અપેક્ષાથી ચોથો ભંગ કરેલ છે, मान प्रमाणे भाग ५ सगानी व्यवस्था सभ लेवी. 'अलेस्से चरिमो' લેયા વિનાના જે જ હોય છે, તેઓને ચે ભંગ જ હોય છે. લેહ્યા વિનાના શલેશી અવસ્થાવાળા જી અને સિદ્ધ જ હોય છે. તેઓને વર્તમાન કાળમાં અને ભવિષ્ય કાળમાં આયુકમને બંધ હોતે નથી. _ 'कण्हपवित्रएणं पुच्छा' पाक्षि ने माश्रय ४ीने श्रीगीतम સ્વામીએ આયુષ્કકર્મના બંધના સંબંધમાં ઉપર પ્રમાણે જ ચાર ભગવાળે પ્રશ્ન કર્યો છે. જેમકે-હે ભગવન કૃષ્ણપાક્ષિક જીવે ભૂતકાળમાં આયુકર્મને બધ કર્યો છે? તે વર્તમાન કાળમાં આયુકર્મને બંધ કરે છે અને ભવિ. ધ્યમાં તે આયુકર્મને બંધ કરશે? અથવા ભૂતકાળમાં તેણે આયકર્મને શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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