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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१ प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् ४५ टीका-'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृहे यावद् एवमवादीत् अत्र यावत्पदेन परिषद् निर्गता, तत्र भगवता धर्मोपदेशः कृतः परिषत् प्रतिगता तदनु पाञ्जलिपुटो गौतम एतदन्तसन्दर्भस्य ग्रहणं भवति किमवादीत् गौतम स्तत्राह-'कइ णे' इत्यादि। 'कइ णं भंते ! णियंठा पन्नता' कति खलु भदन्त ! निर्ग्रन्याः प्रज्ञप्ताः ग्रन्यात् परिग्रहात् बाह्यादाभ्यन्तराच्च निर्गताः ये ते निर्ग्रन्थाः साधवः बाह्याभ्यन्तरपरिग्रहरहितत्वमेव निर्ग्रन्थत्वमित्यर्थः एतादृशाः निम्रन्थाः कति प्रकारका भवन्तीति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'पंच नियंठा पन्नत्ता' पञ्च निर्ग्रन्थाः प्रज्ञप्ताः, प्रकारमेदमेव दर्शयति, अब सूत्रकार सर्व प्रथम प्रज्ञापना द्वार का कथन करते हैं'रायगिहे जाव एवं वयासी' इत्यादि सू० १॥ टीकार्थ--'रायगिहे जाव एवं वयासी' राजगृह नगर में (भगवान् गौतम ने) यावत् प्रभुश्री.से इस प्रकार पूछा यहां यावत् पद से यह पाठ संगृहीत हुभा है-'परिषदा निकली भगवान् ने धर्मोपदेश दिया धर्मो. पदेश सुनकर परिषदा विसर्जित हो गई। इसके बाद दोनों हाथ जोड. कर गौतमस्वामी बोले हे भदन्त ! निर्ग्रन्थ कितने प्रकार के कहे गये हैं ? ग्रन्थ नाम परिग्रह का है। यह परिग्रह बाह्य और आभ्यन्तर के भेद से दो प्रकार का होता है बाह्य आभ्यन्तर परिग्रह से जो रहित होते हैं वे निग्रंथ हैं क्यों कि बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह से रहित होना ही तो निर्ग्रन्धता है। इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! पंच णियंठा पन्नत्ता हे गौतम! निर्ग्रन्थ पांच प्रकार के होते हैं । 'तं जहां जैसे वे सत्र सीथी ५७i प्रज्ञापना बानु थन ४२ छ-'रायगिहे जाव एवं वयात्री' टी -'रायगिहे जाव एवं वयासी' २.०४ नगरमा माननु सभष. સરણ થયું પરિષદ્ ભગવનને વંદના કરવા આવી ભગવાને તેઓને ધર્મદેશના આપી ધર્મદેશના સાંભળીને પરિષદુ પતિપતાના સ્થાને પાછી ગઈ તે પછી બને હાથ જોડીને ઘણું જ વિનય સાથે ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુને આ પ્રમાણે પૂછયું–હે ભગવન નિર્ચન્ટે કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે? ગ્રન્થનામ પરિગ્રહનું છે આ પરિગ્રહ બાહ્ય અને આભ્યન્તરના ભેદથી બે પ્રકાર હોય છે. બાહ્ય અને આભ્યન્તર પરિગ્રહથી જે રહિત હોય છે, તે નિથ છે. કેમકેબાહ્ય અને આભ્યન્તર પરિગ્રહ રહિત થવું એજ નિર્ચ થપણું છે આ प्रश्न उत्तरमा प्रभु डे छे -'गोयमा पंच णियंठा पन्नता' गौतम ! શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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