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________________ भगवतीस्त्रे ज्ञानावरणीयकर्मणो वन्धविषये चतुर्भङ्गकः प्रश्नः, उत्तरमाह - ' एवं जहेब' इत्यादि, ' एवं जदेव पावकम्मस्स वत्तव्वया तदेव णाणावर णिज्जस्स बि भाणि - coat' एवं यथैव पापकर्मणो वक्तव्यता भणिता तथैव ज्ञानावरणीयस्यापि वक्तव्यता भणितव्या पठनीया जीवस्य पापकर्मणो बन्धविषये येन प्रकारेण यो यः भङ्गः प्रदर्शित ज्ञानावरणीय कर्मणो बन्धविषयेऽपि ते एव भङ्गाः प्रदर्शनीयाः ज्ञानावरणीयं कर्म अबध्नाज्जीवः किमि. त्यादि प्रश्नस्योत्तरमाह - हे गौतम! कश्विदेको जीवो ज्ञानावरणीयं कर्म अवधनात् अतीते, वर्तमाने बध्नाति ज्ञानावरणीयम् अनागते कर्मणो बन्धं करिव्यति १, अवघ्नात् ज्ञानावरणीयं कश्चिदेको जीवो बध्नाति च वर्त्तमानकाले न ५६६ 1 १ वह उसका बन्ध नहीं करता है ? 'न भन्रस्यति' भविष्यत् में वह उसका बन्ध नहीं करेगा ? ४ इस प्रकार का यह ज्ञानावरणीयकर्म के बन्ध के विषय में चार भंगों वाला प्रश्न है । उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-' एवं जहेच, पावकम्मस्स वतव्वया तहेव णाणावरणिजस्स वि भाणि - our' हे गौतम! जैसी वक्तव्यता पापकर्म के बन्ध के सम्बन्ध में कही गई है उसी प्रकार की वक्तव्यता ज्ञानावरणीय कर्म के वन्ध के सम्बन्ध में भी कहनी चाहिये । जीव के प्रकरण में पापकर्म के बन्ध करने में जैसी वक्तव्यता चार भंग वाली पहिले कही जा चुकी है उसी प्रकार की वक्तव्यता यहां पर भी ज्ञानावरणीय कर्म के बन्ध करने में चारभंगोवाली वक्तव्यता कहनी चाहिये, तथा च-हे गौतम ! किसी एक जीव ने अतीत काल में ज्ञानावरणीय कर्म का बन्ध किया है, वर्तमान में वह उसका बन्ध कर रहा है । और भविष्यत् काल में भी वह उसका बन्ध करेगा इस प्रकार का यह 'अबधनात् बध्नाति, भन्तस्यति' प्रथम भांग है। तथा किसी एक जीव ने भूतकाल में ज्ञानावरणीय या प्रश्नना उत्तरमां अलुश्री छे - ' एवं ' जहेव पावकम्मरस वत्तster तहेव णाणावरणिज्जस्स वि भाणियन्ना' हे गौतम! चायना अधिना સંબધમાં જે પ્રમાણેનુ' કથન કહેવામાં આવેલ છે, એજ પ્રમાણેનું કથન જ્ઞાનાવરણીય કર્માંના અધના સંબંધમાં પણ કહેવુ જોઈએ. જીવના પ્રકરણમાં પાપકર્મોના બંધ કરવા સમ્'ધી જે રીતે ચાર ભંગરૂપ કથન रेल छे, એજ રીતનું ચાર ભંગાવાળું કથન અહિયાં જ્ઞાનાવરણીય કના ખંધ કર નાના સબધમાં કહેવુ જોઈ એ. તે આ રીતે સમજવુ-ટુ ગોતમ ! એક જીવે ભૂતકાળમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મના અધ કર્યાં છે, વર્તમાનમાં તે તેના અષ કરે છે. તથા ભવિષ્યકાળમાં પણ તે તેના બંધ કરશે. આ રીતે આ 'अबध्नात्, बध्नाति, भन्त्स्यति' पढेबे लगडेल छे. १ તથા ફ્રાઈ એક જીવે ભૂતકાળમાં જ્ઞાનાવરણીય કર્મના 'ધ કર્યાં છે, શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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