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प्रमेयचन्द्रिफारीका श०२६ ३.१ सू०२ नैरयिकबन्धस्वरूपनिरूपणम् ५६१ भणितण्या एकेन्द्रियादीनां वक्तव्यता पार्थक्येन-कथिता मनुष्यस्य वक्तव्यता जीप वक्तव्यता सदृशी एव वक्तव्यता वक्तव्या, जीवस्य निर्विशेषणस्य सलेश्यादि, पदविशेषितस्य चतुर्भयादि वक्तव्यता कथिता सा मनुष्यस्य तेनैव रूपेण निरपशेषा वक्तव्या, जीवमनुष्ययोः समानधर्मस्वादिति । 'वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स' वानव्यन्तरस्य चतुर्भङ्गयादि वक्तव्यता अमुरकुमारवक्तव्यता समा. नैव पठनीया आलापश्च स्वयमेवोहनीयः । 'जोइसियस्स वेमाणियस्स एवं चेत्र' ज्योतिष्कदेवस्य तथा वैमानिकदेवस्य च चतुर्भङ्गयादि वक्तव्यता एवमेव असुर. कुमारवक्तव्यता समानैव ज्ञातव्या। 'नवरं लेस्साओ जाणियब्बो ' नवरं केवलजीव पद में जो वक्तव्यता कही गई है वही सब पूरी की पूरी वक्तव्यता मनुष्य के कथन के सम्बन्ध में कहनी चाहिये। एकेन्द्रियादिक जीवों की वक्तव्यता पृथगूरूप से कही गई है। अतः जीव की वक्त. व्यता के जैसी ही वक्तव्यता मनुष्य की कही गई है। सामान्य जीव की और सलेश्य आदि पद विशेषित जीव की चतुर्भगात्मक वक्तव्यता कही गई है वही वक्तव्यता उसी रूप से मनुष्य की वक्तव्यता के सम्बन्ध में वक्तव्य-बतलाई गई है। क्योंकि मनुष्य में
और जीव में समानधर्मता है। 'वाणमंतरस्स जहा असुरकुमारस्स' वानव्यन्तरों की चार भंगों वाली वक्तब्धता असुरकुमार की वक्तब्धता के समान है । इस सम्बन्ध में आलाप प्रकार का उत्थान अपने आप करना चाहिये, 'जोसियस्स वेमाणिवस्स एवं चेव' ज्योतिष्क देव की तथा वैमानिक देव की चतुर्भगी आदि की वक्तव्यता असुरकुमार की वक्तव्यता के ही समान वक्तव्य है। परन्तु 'नवरं लेस्साओ जाणियકહેવામાં આવેલ છે. તે સઘળું પૂરેપૂરું કથન મનુષ્યના સંબંધમાં કહેવું. જોઈએ. એક ઈન્દ્રિય વિગેરે જીવોનું કથન જુદા રૂપે કહેલ છે, તેથી મનુષ્ય સંબંધી કથન જીવના કથન પ્રમાણે કહેલ છે. સામાન્ય જીવનું અને લેશ્યાવાળા વિગેરે પદથી વિશિષ્ટ જીવનું ચાર ભંગા રૂપ કથન કહેલ છે. તેજ કથન એજ રીતે મનુષ્યના કથન સંબંધમાં કહેવાનું કહેલ છે. કેમકેभनध्यमा मन भी समान ध पा२३ छ. 'वाणमंतररस जहा असुरकुमारस्स' पानव्यतरोनु यार ३५ ४थन असुमारेशना ४थन प्रमाण उस छ. म समधी माता५ प्रा२ स्वयं सभ७ सेवा, 'जोइसियस वेमाणियस्स एवं चेव' ज्योति पर्नु तया वैमानि हेर्नु यार मात्र थन असुशुभाशन उथन प्रमाण वार्नु छ. ५३तु 'नवर लेसाओ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬