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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.८ सू०१ नैरयिकोत्पत्तिनिरूपणम् ५०१ उनबज्जति, परडीए उववज्जति' ते खलु भदन्त ! जीवाः किम् आत्मद्धास्वशक्त्या उत्पद्यन्ते अथवा परद्वर्या अन्यदीयशक्त्या समुत्पद्यन्ते भवान्तरेषु ? इनि प्रश्नः, भगवानाह-गोयमा' इयत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'आयड्रोए उववज्जति' आत्मद्धथै वोत्पद्यन्ते 'नो परडीए उववज्जति' नो परद्धर्या उत्पद्यन्ते यस्मिन् अधिकरणमुत्पत्ति स्तदधिकरणे एवं यदि ऋद्धिर्भवेत्तदैव ऋद्ध युत्पत्योः कार्यकारणभावो भवेत् कार्यकारणयोः सामानाधिकरण्यनियमात् नहि वैयधिकरध्ये कार्यकारणभावो भवति तथात्वेऽतिषसङ्गादिति । 'तेणं भंते ! जीवा कि आयकम्मुणा उववज्जति परकम्मुणा उववज्जति' ते खलु भदन्त ! जीवाः किमाजंति परडीए उववज्जंति' हे भदन्त ! वे जीव क्या भवान्तर में अपनी ऋद्धिरूप शक्ति से उत्पन्न होते हैं ? अथवा दूसरे की शक्तिरूप ऋद्धि से उत्पन्न होते हैं ? उत्तर है प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा आयडीए उययज्जति नो परडीए उबवति ' हे गौतम! वे जीव परभव में अपनी ही शक्ति रूप ऋद्धि के बल से उत्पन्न होते हैं। पर की शक्ति रूप ऋद्धि के बल से उत्पन्न नहीं होते हैं ? यहां जो ऐसा कहा गया है उसका तात्पर्य यही है कि जिस आत्मा में परभव में उत्पत्ति की कारण भूत अपनी ऋद्धि है उससे ही वह-वहां उत्पन्न हो सकता है अन्य की ऋद्धि से नहीं, नहीं तो फिर अपनी ऋद्धि और अपनी उत्पत्ति में कार्य कारण भाव नहीं बन सकता है। क्यों कि कार्यकारण भाव में समानाधिकरणता का नियम होता है। 'ते णं भंते ! जीवा किं आयकम्मुणा उवधज्नंति, परकम्मुणा उववति ' हे भदन्त वे जीव ड्ढीए उववज्जंति' मापन ते वो al-divi पातानी ऋद्धि३५ शतिथी ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા બીજાની શકિત રૂપ ઋદ્ધિથી ઉત્પન્ન થાય છે ? मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ-'गोयमा! आयड्ढीए घरज्जंति नो परड्रडीए उववज्जति गौतम ! ते ७व। ५२वभा पातानी १ त ३५ અદ્ધિના બળથી ઉત્પન્ન થાય છે. બીજાની શકિત રૂપ ત્રાદ્ધિના બળથી ઉત્પન્ન થતા નથી. અહિયાં જે કહેવામાં આવેલ છે તેનો ભાવ એ છે કે-જે આત્મામાં પરભવમાં ઉત્પત્તિના કારણ રૂ૫ પોતાની અદ્ધિ છે, એજ જીવ ત્યાં ઉત્પન્ન થઈ શકે છે, બીજાની ઋદ્ધિથી ઉત્પન્ન થઈ શકતા નથી. નહીં તે પિતાની દ્ધિ અને પિતાની ઉત્પત્તીમાં કાર્ય કારણું ભાવજ બની જાય છે. કેમકે ॥ ४२६५ साभा समानाधि४२४ान नियम साय छे. 'तेणं भंते ! जीवा कि आयक-मुणा उववज्जंति, परकम्मुणा उववज्जति' समपन् ते ७ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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