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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् १९१ 'लोमविउसग्गे' लोभव्युत्सर्गः लोमत्याग इति । 'से तं कसायविउसने सोऽयं पूर्वोक्तक्रमेण कषायव्युत्सर्गों निरूपितः । ‘से किं तं संसारविउसग्गे' अथ कास संसारव्युत्सर्गः, संसारव्युत्सर्गस्य कि स्वरूपं कियन्त भेदाः ? इति प्रश्ना, उत्तरमाह-'संसारविउग्गे' संसारव्युत्सर्गः 'चउबिहे पन्नत्ते' चतुर्विधा प्राप्तः 'तं जहा'-तद्यथा-'नेरइयसंपारविउसग्गे' नैरयिकसंसारव्युत्सर्गः 'जाव देवसंसारविउसग्गे यावद् देवसंसारव्युत्सर्गः, अत्र यावत्पदेन मनुष्यसंसारव्युत्सर्ग: तिर्यक् संसारव्युत्सर्ग योग्रहणं भवतीति । 'से तं संसारविउसग्गे' सोऽयं पूर्वोतक्रमेण संसारव्युत्सर्गों निरूपित इति । 'से कि त कम्मविउसग्गे' अथ कः स कर्मव्युत्सर्गः कर्मव्युत्सर्गस्य किं स्वरूपं कियन्तश्च भेदाः? करना 'सेत्तं कसाविउसग्गे इस प्रकार से यह कषायव्युत्सर्ग के विषय में कथन किया है 'से कि तं संसारविउसग्गे' हे भदन्त ! संसारव्युत्सर्ग का क्या स्वरूप है और कितने उसके भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'संसारविउसग्गे चविहे पणत्ते' हे गौतम! संसारव्युत्सर्ग चार प्रकार का कहा गया है-'तं जहा' जैसे'नेरइय संसारविउसग्गे' नैरयिक संसार का त्याग करना 'जाव देय संसारविउसग्गे' यावत् देव संसार का त्याग करना-यहां यावत्पद से 'मनुष्य संसारव्युत्सर्ग और तिर्यम् संसार व्युत्सर्ग' इन दो संसार व्युत्सर्गों का ग्रहण हुआ है ! 'से तं संसारविउसग्गे' इस प्रकार से यह संसार व्युत्सर्ग के सम्बन्ध में प्रमुश्री ने कशन किया है। 'से कि त कम्मविउसग्गे' हे भदन्त ! कर्मव्युत्सर्ग का क्या स्वरूप है है और कितने उसके भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'कम्पवित. ४२३. 'लोभविउखगे' सनी या २३ 'से त कसायविउसग्गे' मा प्रभाव આ કષાય વ્યુત્સર્ગના સંબંધમાં કથન કરેલ છે. __से कि त संसारवि उसग्गे' सान् सा२ व्युत्नु शु ११३५ છે ? અને તેના કેટલા ભેદે કહ્યા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે કે'संसारविउसग्गे चउविहे पण्णत्ते' हे गीतम! ससा२ ०युत्सर्ग या२ रन हे छे. 'तौं जहा' मा प्रमाणे छे. 'नेरइयसंसारवि उसग्गे' नैयि संसार व्युत्समर्थात् नैरायससाना त्यास ४२३1. 'जाव देवसंसारविउसग्गे' यावत् દેવસંસારને ત્યાગ કર અહિયાં યાવાદથી “મનુષ્ય સંસારત્રુત્સર્ગ અને तिय ससा२०युत्सग मामेव्युत्स घडी ४२राया छे. 'से त्त कम्मविउसामे मा प्रमाणे मा ससार व्युत्सम ना समयमा थन ४३९ छे. 'से किनकम्म विउसगे' सावन में व्यसन १३५ छ । भने नासालेही - - - - - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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