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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् ५८९ व्युत्सर्ग:-द्रव्यत स्त्यागः चतुर्विधः प्रज्ञात इति । 'तं जहां तद्यथा-'गणविउसग्गे' गणव्युत्सर्गः, तत्र व्युत्सर्गों नाम अनभिष्वङ्गतात्याग इत्यर्थः परिहारविशुद्धचारि. त्रार्थ जिनकल्याचाराधनाय गणस्य व्युत्सर्गस्त्यागो गणव्युत्सर्गः सोऽयं प्रथमोव्युत्सर्गः १ । 'सरीरविउसग्गे' शरीरव्युत्सर्गः-शरीरनिष्ठासक्तेः परित्यागः । 'उबहिविउत्सगे' उपधिव्युत्सर्ग:-वस्त्र पात्रादिसंयमोपकरणेष्वपि आसक्ति परिवर्जनमिति । 'मत्त पाणविउसग्गे' भक्तपानव्युत्सर्गः: 'से तं दव्वविउसग्गे' सोऽयं द्रध्यव्युत्सों निरूपित्त इति । भावव्युत्सर्ग ज्ञापनायाह-'से कि तं' इत्यादि, भदन्त ! द्रव्यव्युत्सर्ग का क्या स्वरूप है और कितने उसके भेद हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'दव्वविउसग्गे चउब्धिहे पण्णत्ते' हे गौतम! द्रव्यव्युमर्ग चार प्रकार का कहा गया है । 'तं जहा' जैसे-'गणविउ. सग्गे' गणव्युवर्ग-गुस्सर्ग शब्द का अर्थ आसक्ति का त्याग है। परि. हार विशुद्धि चारित्रके लिये अथवा जिनकल्प भादि की आराधना के लिये गण का जो त्याग कर दिया जाता है वह गणव्युत्सर्ग है। यह व्युत्सर्ग का प्रथम भेद है। 'सरीरविउसग्गे' शरीरव्युत्सर्ग शरीर सम्बन्धी आसक्ति का त्याग यह व्युत्सर्ग का द्वितीय भेद है । 'उहि विउसग्गे' उपधिव्युत्सर्ग-वस्त्र पात्र आदि जो संयम के उपकरण है उनके भी असक्ति का जो त्याग है यह व्युत्सर्ग तप का तृतीय भेद है। 'भत्तपाणविउसग्गे' भक्तपानव्युत्सर्ग आहार पानी का त्याग करना -यह व्युत्सर्ग का चतुर्थ भेद है । 'सेत्तं दव्य विउसग्गे' इस प्रकार से यह द्रव्यव्युत्सर्ग है । ‘से किं तं भावविउत्सग्गे' हे भदन्त ! भावव्युन्सर्ग मेह छ १ मा प्रश्नन। उत्तरमा प्रसुश्री ४ छे -‘दव्वविउलग्गे चउविहे पण्णत्ते से गौतम ! द्रव्य व्युत्स या२ प्रा२नु ४९ छे. 'त' जहा' ते
॥ प्रभार छ.-'गणविउसम्गे' गणव्युत्सग, व्युत्सम शहना अथ आसકિતને ત્યાગ એ પ્રમાણે છે. પરિહારવિશુદ્ધિક ચારિત્ર માટે અથવા જનકપ વિગેરેની આરાધના માટે ગણન જે ત્યાગ કરવામાં આવે છે, તે ગણુ ચુ. ત્સર્ગ કહેવાય છે. આ વ્યુત્સગને પહેલો ભેદ થાય છે.
'सरीरविउसगे' शरीर व्युत्सम शरी२ समधी आसतिने त्यास मा व्युत्समन जीन मे डस छे. 'उवहिविउसगे' ५वि युसन-पत्र, पात्र, વિગેરે જે સંયમના ઉપકરણે છે. તેમાં પણ આસકિતનો જે ત્યાગ કહેલ છે ते व्युत्सम तपने श्रीन से थाय छे. 3 'भत्तपाणविउसग्गे' तपान ०५ ત્સર્ગ–આહારપાણીને ત્યાગ કર આ યુત્સગને ચોથો ભેદ કહેલ છે. 'से त्त दवविउपरगे' मा रीते मा द्रव्य व्युत्सम ना लेहो ४ा छ.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬