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________________ भगवतीस्त्रे 'णिओगा य णिओय जीवा य' निगोदाश्च निगोदजीवाश्च तत्र निगोदो नाम अनन्तजीवानामेकशरीरेऽवस्थानम् तथा अनन्तकायिकजीवाः निगोदजीवा इति कथ्यन्ते। 'णिगोया णं भंते ! काविहा पन्नत्ता' निगोदाः खलु भदन्त ! कतिविधाः प्रज्ञप्ताः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! "दुविहा पन्नत्ता' द्विविधा निगोदा: प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा-'सुहुमनिगोदाय बायरनिगोदा य' मूक्ष्मनिगोदाश्च बादरनिगोदाच चमचक्षुषा यो न दृश्यते स सूक्ष्मनि गोदः चर्मचक्षुषा परिदृश्यमानश्च निगोदो बादरनिगोद इति 'एवं णिगोदा भाणियबा जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेसं' एवं निगोदा भणितव्या यथा जीवाभिगमे पश्चमपतिपत्तौ तथैव निरवशेषम् । जीवाभिगमप्रकरणं चेत्थम्-'मुहुजैसे-'णिओयगाय जिओगजीवाय' निगोदक और निगोद जीव अनन्त जीवों का एक शरीर में जो अवस्थान है वह निगोद है । तथा अनन्तकायिक जो जीव हैं वे निगोद जीव हैं। 'णिगोयाणं भंते ! कइविहा पन्नत्ता' हे भदन्त ! निगोद कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! दुविहा पनत्ता' हे गौतम ! निगोद दो प्रकार के कहे गये हैं । 'तं जहा' जैसे-'सुहुम निगोदा य बायर निगोदा य' सूक्ष्म निगोद और बादर निगोद चर्मचक्षु से जो शरीर दिखाई नहीं दे सकता वह सूक्ष्म निगोद और जो दिखाई देता है वह बादर निगोद है। एवं णिगोदा भोणियम्वा जहा जीवाभिगमे तहेव निर. वसेसं' इस प्रकार से जीवाभिगम सूत्र की पञ्चम प्रतिपत्ति में कहें अनुसार समस्त निगोद सम्बन्धी कथन यहां कहना चाहिये । वह इस प्रमाणे छ. 'णिओगाय णीओगजीवाय नि भने नि६७१ मत. જીનું એક શરીરમાં જે અવસ્થાન-રહેવાનું છે તે નિગોદ છે. તથા અનંત. ४ि२ । छ त निगावो छ 'णिगोयाणं भवे ! कइविहा पम्नचा' હે ભગવન નિગદ કેટલા પ્રકારના કહ્યા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु छ -'गोयमा ! दुविहा पन्नत्ता" 3 गौतम ! निगाह में प्रा२ना ह्या छ 'तं जहा' रेभडे-'सुहुमनिगोदा य बायरनिगोदा य' सूक्ष्म निगाह भने બાદર નિગોદ, ચર્મચક્ષુવાળાઓથી જે શરીર દેખાય નહીં તે સૂફમનિગઢ छ. सन २ वामां आवे छे. ते माह२ निगाह छे. 'एवं णिगोदा भाणियव्वा जहा जीवाभिगमे तहेव निरवसेस" मारीत निगम सूत्रमा ४ प्रमाणे સઘળા નિગેદ સંબંધી કથન અહીયાં કહેવું જોઈએ જીવાભિગમ સૂત્રમાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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