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________________ ममेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ २०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् ४७९ ऽनृतादत्तादानसंरक्षणाना मन्यतम इति ओसन्नदोषः प्रथमं लक्षणम् १। बहुलदोसे' बहुलदोषः बहुचपि सर्वेष्वपि हिंसान्तादत्तादानसंरक्षणेषु दोषः प्रवृतिलक्षण इति बहुलदोषनामकं द्वितीयं लक्षणम् २ । 'अण्णाणदोसे' अज्ञानदोषः अज्ञा. नाव दोषोऽज्ञानदोषः अज्ञानाव-कुशास्त्रपरिशीलनजनित संस्कारात् हिंसानृतादिषु अधर्मस्वरूपेषु धर्मबुद्धया प्रवृतिः तल्लक्षणो दोषोऽज्ञानदोषनामकं तृतीयं लक्षणं रोद्रध्यानस्येति 'आमरणांतदोसे' आमरणान्तदोषः मरणमेवान्त इति मरणान्त: आमरणान्तात आमणान्तम् मरणपर्यन्तम् असंजातानुतापस्य काळशौकरिकादेखि या हिंसादौ प्रवृत्तिः सैव दोष इति आमरणान्तनामकं चतुर्थलक्षगं रौद्रध्यानस्येति ५ । आतध्यानं रोद्रध्यानं च निरूप्य तृतीयं धर्मध्यानं निरूपयन्नाह-'धम्मे साणे' इत्यादि । 'धम्मे झाणे चउबिहे चउप्पडोयारे पन्नत्ते' धर्मध्यानं चतुर्विधं से कोई एक दोष हो वह इसका प्रथम लक्षण है 'बहुलदोसे' जिसमें हिंसा अनुन (झूल) अदत्तादान संरक्षण इन दोषों में प्रवृत्ति करने रूप बहुत दोष हो वह इसका द्वितीय लक्षण है 'अण्णाणदोसे' अज्ञान से जो दोष है वह अज्ञानदोष है-अर्थात् कुशास्त्रों के पठन से जायमान संस्कार के वशवर्ती हुए व्यक्ति की जो अधर्मरूप हिंसा झूठ आदि दोषों में धर्मबुद्धि से प्रवृत्ति होती है वह अज्ञानदोष नाम का इसका तीसरा लक्षण है 'आमरणांतदोसे' मरणपर्यन्त भी कालशौकरिक आदि के जैसे पश्चात्ताप हुए बिना ही हिंसादिकों में प्रवृत्तिबनी रहना यह इसका चतुर्थ लक्षण है। इस प्रकार से आध्यान और रौद्रध्यान का निरूपण करके अब सूत्रकार धर्मध्यान का वर्णन करते हैं-'धम्मे झाणे चउब्धिहे चउपडोपयारे पण्णत्ते' धर्मध्यान चार प्रकार का एवं त त ५ ले छे. 'बहुलदोसे' मा हिंसा, असत्य, महत्तहान, સંરક્ષણ આ દોષ પ્રવૃત્તિ કરવા રૂપ દોષ હોય તે તેને બીજે ભેદ છે. 'अण्णाणदोसे' महान ३पी २ प छ, ते ज्ञान देष उपाय छ, अर्थात् કુશાસોના અભ્યાસથી થવાવાળા સંસ્કાર વિશાત્ અધર્મ. હિંસા, અસત્ય વિગેરે દોષોમાં ધર્મબુદ્ધિથી જે પ્રવૃત્તિ થાય છે, તે અજ્ઞાન દોષ નામને રૌદ્રધ્યાनना श्रीन हजे. 'आमरणंतदोसे' शी:Rsनी भाई भर५ ५-तना પશ્ચાત્તાપ કર્યા વિના જ હિંસા વિગેરેમાં પ્રવૃત્તિ કર્યા કરવી તે રૌદ્રધ્યાનને ચોથો પ્રકાર છે. ઉપર પ્રમાણે આર્તધ્યાન અને રૌદ્રધ્યાનનું નિરૂપણ કરીને હવે સૂત્રऔर ध्यान नि३५५५ रे -'धम्मे झाणे चटविहे चउप्पडोपयारे पण्णते' - શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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