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प्रमेयचन्द्रिका टीका २०२५ उ.७ सू०११ ध्यानस्वरूपनिरूपणम् ४७७ स्थ खलु ध्यानस्य चत्वारि लक्षगानि प्रज्ञप्तानि 'तं जहा' तद्यथा-'कंदनया' क्रन्दनता-क्रन्दनम् महता शब्देन रोदनम्, 'सोयणया' शोचनता दीनतेत्यर्थः, 'तिप्पणया' तेपनता-अश्रुविमोचनम् 'परिदेवणया' परिदेवनता-पुनः पुनः क्लिष्टमाषणता विलाप इति भावः, आतंध्यानं समभेदं निरूप्य रौद्रध्याननिरूपणाय प्राह-'रोद्दे झाणे चउबिहे पन्नत्ते' रौद्रं ध्यानं चतुर्विधं प्रज्ञप्तम् 'तं जहा' तथा 'हिंसाणुबंधी' हिंसानुबन्धि, हिंसाम् -माणिनां वधबन्धनादिभिः प्रकारैः पीडामनुबध्नाति-सततमवृत्तां पीडां करोति इत्येवं शीलं यत् प्रणिधानं हिंसानु चन्धो वा यत्रास्ति तद् हिंसानुबन्धि रौद्रध्यानमिति प्रथमम् १ । लक्षण कहे गये हैं-'तं जहा' जैसे-'कंदनया' क्रन्दनता जोर जोर से रोना 'सोयणया' शोचनता-दीनता प्रदर्शित करना तिप्पणया' तेप. नता-अश्रुषहाना 'परिदेवणया' परिदेवनता-बार बार विलाप करना इस प्रकार से यह सभेद सलक्षण आर्तध्यान का वर्णन है । रौद्रध्यान चार प्रकार का कहा गया है-'तं जहा' जैसे 'हिंसाणुबंधी प्राणियों को वध बन्धनादि प्रकारों से जो पीडा को उत्पन्न करने का विचार करता रहता है उन्हें निरन्तर पीडित करने का ही उद्यम करता रहता है ऐसे प्राणी का जो ध्यान है-विचार धारा है अथवा उस ओर लगी हुई चित्त की एकाग्रता है-वह हिंसानुबंधी रौद्रध्यान है। अथवा जिस ध्यान में हिंसा का ही सम्बन्ध है वह ध्यान हिंसानुबन्धी है यह रौद्रध्यान का प्रथम भेद है। 'मोसाणुबंधी' मृषानुबंधी-जिस ध्यान में
से छे. 'अटुस्स णं झाणस्य चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता' ॥ शत ! सातध्यानना यार सक्ष। ४४ा छे. 'तौं जहा' ते मा प्रमाणे ठे-'कंदनया'
नता नररथी २७९. 'सोयणया' शायनता-हीनता मताली 'तिप्पणया' तपनता-मांस १९५१३॥ 'परिदेवणया' पश्विनता पार पा२ विमा५ १२व આ રીતે આ ભેસહિત, લક્ષણ સહિત આર્તધ્યાનનું લક્ષણ કહેલ છે.
ड शैद्रध्यानना सक्षY ४ामा मावे छे-ते मा प्रभा छे.-'रोदे झाणे चउविहे पण्णत्ते' शैद्रध्यान या प्रा२नु छे. 'त जहा ते सा प्रमाणे है-हिंसाणबंधी' प्राणियोना १५ विराधना-बन्धन विगैरे प्राथी तभन પીડા ઉત્પન્ન કરવાને વિચાર કરે છે, અર્થાત્ તેઓને હમેશાં પીડા કરવાનો જ ઉદ્યમ કરે છે. એવા પ્રાણિયેનું જે ધ્યાન છે, અર્થાત વિચારધારા છે–અર્થાત્ તે તરફ લાગેલી ચિત્તની જે એકાગ્રતા છે તે હિંસાનુબંધી રિૌદ્રધ્યાન કહેવાય છે. અથવા જે ધ્યાનમાં હિંસાને જ સંબંધ છે, તે ધ્યાન हिंसानुमची छे, मा शैद्रध्यानना पडसले छे. 'मोसाणुबेधी' भुषानुमची
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬