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प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.५ सू०१ पर्यवादिनिरूपणम्
२१ सागरोपमम् ‘णो असंखेज्जपलिओवमा णो अणंता पलिओत्रमा' नो असंख्यात पल्योपमस्वरूपं सागरोपमं न वा अनन्तपल्यो रमस्वरूपं सागरोपमं भवतीति । एवं ओसप्पिणीए वि उस्सप्पिणीए वि' एवम् -सागरोपमवदेव अवसपिण्य उत्सर्पि ण्योऽपि नासंख्यातपल्योपमस्वरूपा न वा-अनन्तपल्योपमस्वरूगः किन्तु संख्यात. पल्योपमस्वरूपा एवेति भावः । 'पोग्गळपरियट्टे णं पुच्छा' पुद्गलपरिवर्तः खलु भदन्त ! कि संख्यातपल्योपमरूपोऽसंख्यातपल्योपमोऽनन्तपल्योपमरूपो वा भव तीति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा हे गौतम ! 'णो संखेजा पलि भोवमा णो असंखेज्जा पलिश्रोवमा' नो संख्यातपस्योपमात्मक पुद्गलपरिवत्तों नो असंख्यातपल्योपमात्मकः, किन्तु 'अर्णता पालि पोवमा' अनन्तसंखेज्जा पलिओवमा' हे गौतम ! सागरोपम काल संख्यात पल्योपम रूप होता है 'णो असंखेज्जा पलिओवमा णो अर्णता पलिओवमा असंख्यात पल्योपम रूप नहीं होता है और न अनन्त पल्योपम रूप होता है। 'एवं ओसप्पिणीए वि उस्सप्पिणीए वि' इसी प्रकार से अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी काल भी असंख्यात पल्योपम रूप नहीं होते हैं न अनन्त पल्योपमरूप होते हैं, किन्तु संख्यात पल्योपम रूप ही होते हैं । 'पोग्गलपरियट्टे णं भंते ! पुच्छा' हे भदन्त ! पुद्गल परिवत्त क्या संख्यात पल्योपम रूप होता है ? अथवा असंख्यात पल्योपमरूप होता है अथवा अनन्त पल्योपम रूप होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! णो संखेज्जा पलिओवमा णो असंखेजना पलिओवमा अणंता पलिओवमा' हे गौतम । पुद्गलपरिवर्तरूप काल न संख्यात पल्योपमरूप होता है न असंख्यात पल्योपमरूप होता है, पलिओवमा' 3 गौतम ! सा५५ ४४॥ भ्यात पक्ष्या५५ ३५ सय में जो असं खेज्जा पलिओवमा णो अणंता पलिओषमा' असभ्यात पक्ष्यायम ३५डातो नथी. अन अनत पक्ष्या५म ३५ पडता नयी ‘एवं ओस पिणीए वि उस. पिणीय विक प्रभाग समिती भने असी ५ असल्यात પલ્યોપમ રૂપ લેતા નથી. અનંત પાયમ રૂપ પણ લેતા નથી, પરંતુ सध्यात ५८।५म ३५ न डाय छे. 'पोग्गलपरिय? गं भंते पुच्छा' लभवन પુલ પરિવત્ત” શું સંખ્યાત પલ્યોપમ રૂપ હોય છે? અથવા અસંખ્યાત પ. પમ રૂપ હોય છે કે અનંત પળેપમ રૂપ હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गौतमवामी २ छे ..'गोथमा ! णो संखेज्जा पलिओषमा जो असंखेज्जा पलिओवमा अणंता पलिओवमा' गतम १ पुस ५२१त्त ३५ કાળ સંખ્યાત પપમ રૂપ હતા નથી અસંખ્યાત પલ્યોપમ રૂપ પણ હતા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬