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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ५०१ पर्यवादिनिरूपणम् १९ असंख्यातावलिकारूपाः स्यादनन्तावलिकारूपा इति भावः । 'पोग्गल परियहाणं पुच्छा' पुद्गलपरिवर्त्ताः खलु भदन्त । किं संख्यातावळिकारूपा असंख्याताबलिकारूपाः, अथवा अनन्तावलिकारूपा भवन्तीति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'णो संखेज्जाओ णो असंखेज्जाओ आवलियाओ अनंताओ आवलियाओ' नो संख्यातावलिकारूपाः पुद्गलपरिवर्त्ताः नो वा असंख्यातावळिकारूपाः किन्तु अनन्तावलिकारूपाः पुद्गलपरिवर्त्ता भवन्तीति । आनप्राणपदमाश्रित्य एकवचनेनाह - 'थोवे णं भंते । किं संखज्जाओ आणापाणूओ असंखेज्नाओ ० ' स्तोकः खलु भदन्त ! किं संख्यातानप्राणरूपः असंख्यातानमाणरूपः, अथवा अनन्तानमाणरूपो भवतीति प्रश्नः । उत्तर चित् अनन्त आवलिका रूप होते हैं । 'पोग्गल परिषद्वाणं पुच्छा' हे भदन्त ! बहुत पुद्गल परावर्तरूप काल क्या संख्यात आवलिकारूप होते हैं ? अथवा असंख्यात आवलिका रूप होते हैं ? अथवा अनन्त आवलिका रूप होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! जो संखेज्जाओ जो असखेज्जाओ आवलियाओ अनंताओ आवलियाओ' हे गौतम! बहुत पुद्गल परावर्त्त रूप काल संख्यात आवलिका रूप नहीं होते हैं असंख्यात आवलिकारूप नहीं होते हैं किन्तु अनन्त आवलिका रूप होते हैं । अब गौतमस्वामी प्रभुश्री से आनप्राण पद को लेकर एकवचन से ऐसा पूछते हैं- 'धोवे णं भंते! किं संखेज्जाओ आणापाणून असंखेज्जाओ ० हे भदन्त ! स्तोक रूप जो काल है वह क्या संख्यात श्वासोच्छ्वास रमने अर्धवार अनंत भाव ३५ होय छे 'पोगालपरियट्टा णं' पुच्छा' डे ભગવન્ સઘળા પુદ્ગલ પરાવકિાળ શુ' સંખ્યાત આવલિકા રૂપ હોય છે? અથવા અસંખ્યાત આવલિકા રૂપ હોય છે ? અથવા અનંત આવલિકા રૂપ होय हे ? या प्रश्नना उत्तरमां प्रभुश्री गौतम स्वामी ते ४ थे ! - 'गोयमा ! णो संखेज्जाओ' णो अस खेज्जाओ आवलियाओ अनंताओ आवलियाओ' ગૌતમ સઘળા પુદ્ગલ પરાવર્ત્ત કાળ સખ્યાત આવલિકા રૂપ હૈાતા નથી, અસ’ખ્યાત આવલિકા રૂપ પણ હાતા નથી. પરંતુ અનંત આવલિકા રૂપ હોય છે, हवे गौतमस्वाभी अनुश्री ने मेधुं पूछे छे ! 'थोवे णं भवे किं सखेज्जाओ आणापाणूओ अस' खेज्जाओ' हे भगवन् स्तो४ ३५ ने आज . ते शु સખ્યાત શ્વાસેાાસ રૂપ હોય છે? અથવા અસખ્યાત આનપ્રાણ રૂપ હાય શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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