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भगवतीसूत्रे संख्यातावलिका रूपाणि असंख्यातावलि कारूपाणि अथवा-अनन्तावलिकारूपाणि भवन्तीति पृच्छा-पश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो संखेज्जायो आवलियाओ' नो संख्यातालिकारूपाणि पल्योपमानि भवन्ति किन्तु 'सिय असेखनाओ आवलियाओ सिय अणताओ आवलियाओ' स्यात्-कदाचित् असंख्यातावलिकारूपाणि स्यात्-कदाचित् अनन्तावलिकारूपाणि पल्योपमानोति । 'एवं जाव उस्सप्पिणीभो' एवं यावदुत्सर्पिण्यः, अत्र यावत्पदेन सागरोपमावसर्पिणीकालसंग्रहो भवति-तथा च हे गौतम ! सागरोपमादारभ्य उत्सर्पिणी पर्यन्ताः कालाः न संख्यातावलिकारूमा भवन्ति किन्तु कदाचित तापलिकारूप होते हैं कदाचित् असंख्यात आवलिका रूप होते हैं
और कदाचित् अनन्त आचलिकारूप होते हैं । 'पलिओवमाणं पुच्छा' इस स्त्र द्वारा गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा हैहे भदन्त ! बहुत पल्योपम रूप काल क्या संख्यात आवलिकारूप होते हैं अथवा असंख्यात आवलि का रूप होते हैं ? अथवा अनन्त आवलिका रूप होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! जो संखेज्जाओ आवलियाओं, सिय असंखेज्जाओ आवलियाओसिय अणंताओ आवलियाओ' हे गौतम! बहुन पल्योपम रूप काल संख्यात आवलिका रूप नहीं होते हैं किन्तु कदाचित् बे असंख्यात आवलिका रूप होते हैं और कदाचित् अनन्त आवलिका रूप होते हैं । 'एवं जाव उस्सप्पिणीओ' इसी प्रकार बहुत सागरोपम काल बहुत अवसर्पिणी काल और बहुत उत्सर्पिणीकाल भी संख्यात आवलिकारूप नहीं होते हैं किन्तु कदाचित् वे असंख्यात आवलिका रूप होते हैं और कदा ३५ खाय छ, भने वार मनात मा ३५ उय छ 'पलिओवमाण पुच्छा' આ સૂત્ર દ્વારા ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુશ્રી ને એવું પૂછયું છે કે-હે ભગવદ્ સમસ્ત પલ્યોપમ રૂપ કાળ શુ સંખ્યાત આલિકા રૂપ હોય છે ? અથવા અસંખ્યાત આવલિકા રૂપ હોય છે ? કે અનંત આવલિકા રૂપ હોય છે ? આ प्रशना उत्तरमा प्रभुश्री छ -'गोयमा णो संखेज्जाओ आवलियाओ सिय असंखेज्जाओ आवलियाओ सिय अणंताओ आवलियाओ' 3 गौतम सघणे પોપમકાળ સંખ્યાત આવલિકા રૂપ હોતો નથી પરંતુ કેઈવાર તે સંખ્યાત આવલિકા ૩૫ હોય છે ? અને કે ઈવાર અનંત આવલિકા રૂપ હોય છે. 'एवं जाव उत्सप्पणीओं' से प्रमाणे यावत् सण सागरोयम र सा ઉત્સણિી કાલ અને સઘળા અવસર્પિણી કાળે પણ સંખ્યાત આવલિકા ૩૫ હતા નથી પરંતુ તેઓ કોઈવાર અસંખ્યાત આવલિકા રૂપ હોય છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬