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________________ २५४ भगवतीस्त्रे एकसमयेन जायन्ते तत्र 'असयं खत्रगाणं' अष्टशतं क्षपकाणाम् क्षपकश्रेणिमतां साधूनाम् अष्टोत्तरशतं भवति तथा-'चउवन्नं उवसामगाणं' चतुः पञ्चाशत् उपशमकानाम् उपशमश्रेणिमतां चतुः पञ्चाशद्भवति अभयोर्मेलने द्विषष्टयुत्तरशतं भवति प्रतिपद्यमानकानां निर्ग्रन्थानां सहैव उत्पद्यमानानाम् उत्कर्षत इति । ' पु०पडिबन्नए पड़च्च सिय अस्थि सिय नत्यि' पूर्वप्रतिपन्नकान् निर्ग्रन्थान् प्रतीत्य स्यादस्ति स्यान्नास्ति, 'ज अस्थि' यदि अस्ति भवति तदा- 'जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिभि वा' जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा सहैव जायन्ते निर्ग्रन्याः, 'उक्कोसेणं सयहुतं' उत्कर्षेण शतपृथक्त्वम् द्विशतादारभ्य नवशतपर्यन्ता निर्ब्रन्या एकदा जायन्ते उत्कर्षत इति । 'सिणायाणं पुच्छा' स्नातकाः खलु भदन्त एकसमये कियन्तो भवन्तीति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ? ' पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि' प्रतिपद्यहै । इनमें 'असयं खवगाणं चडवन्ने उवसामगाणं' १०८ क्षपकश्रेणिचाले निर्ग्रन्थ होते हैं और 'चउवन्नं उवसामगाणं' ५४ उपशम श्रेणिचाले निर्मन्थ होते हैं 'पुव्व पडिवन्नए पडुच्च सिय अस्थि सिय नस्थि' तथा पूर्व प्रतिपन्नक निग्रन्थों को आश्रित करके निर्ग्रन्थ एक समय में कदाचित होते हैं और कदाचित नहीं भी होते हैं। यदि वे होते है तो 'जहन्ने एक्को वा दो वा तिनि वा' जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन होते हैं और 'उक्कीसेणं' उत्कृष्ट से 'सयपुहुत' दो सौ से लेकर ९ सौ तक होते हैं। यह सब कथन एक समय में उनके होने का है । 'सिणायाणं पुच्छा' हे भदन्त ! एक समय में स्नातक कितने होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोवमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च ar aani चवन्ने उवसामगाणं' १०८ मे सोमा क्षय श्रेीवाजा नियंन्थ होय छे भने 'चउवन्ने उवखामगाणं' ५४ थोपन उपशम श्रेणीवाणा निर्मन्थे। होय छे. 'पुव्व पडिवन्नए पडुच्च सिय अत्थि सिय नत्थि' तथा પૂર્વ પ્રતિપન્નક નિગ્રન્થાના આશ્રય કરીને નિગ્રન્થ એક સમયમાં કાઇવાર होय छे, भने अर्धवार नथी पशु होता ले तेथे होय छे. तो 'जहणणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा धन्यथी मेड अथवा मे अथवा भालु होय छे, मने 'उक्कोसेणं' उत्सृष्टथी 'सयपुहुत्त" मसोथी सहने नवसे सुधी डाय છે. આ સઘળુ" કથન એક સમયમાં તેઓને હાય છે. 'सिणाया णं पुच्छा' हे भगवन् मे समयमा स्नातः डेंटला होय है ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रलुश्री छे हैं - गोयमा ! पडिनज्ञमाणए पडुब શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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