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________________ २५२ भगवतीस्त्रे 'उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त' उत्कर्षेण सहस्रपृथक्त्वम् द्विसहस्रादारभ्य नव सहस्रपर्यन्ताः कषायकुशीला एकसमये जायन्ते इति । 'पुनपडिपज्जए पडुच्च' पूर्वप्रतिपन्नकान् कषायकुशीलान् प्रतीत्य-अपेक्ष्य, 'जहन्नेणं कोडिसहस्सपुहुत्तं' जघन्येन कोटिसहस्रपृथक्त्वम् द्विकोटिसहस्रादारभ्य नक्कोटि सहस्रपर्यन्ताः कषायकुशीला पतिसमय जायन्ते, 'उकोसेण वि कोडिसहस्सपुहुत्त' उत्कृर्षतोऽपि कोटिसहस्रपृथक्त्वम् । ननु सर्वसंयतानां कोटिसहस्रपृथकत्वमन्यत्र श्रूयते । इह तु केवलानां कषायकुशीलानामेव कोटिसहस्रष्टयक्त्वं कथितम् ततः पुळाकादिसंख्या तदतिरिक्ता भवतीति कोटिसहस्रपृथक्त्वकथनमत्र विरुद्ध मति चेदत्रोच्यते कषायतिन्नि वा' यदि कषायकुशील एक समय में होवे तो जघन्य से एक भी हो सकता है दो भी हो सकता है और तीन भी हो सकता है और 'उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्त" उत्कृष्ट से एक समय में दो हजाह से लेकर ९ हजार तक हो सकते हैं। तथा-'पुव्वपडिवन्नए पडुच्च' तथा पूर्वप्रतिपन्न कषायकुशीलों की अपेक्षा से 'जहन्नेणं कोडिसहस्सपुहुत्त' जघ. न्यरूप में कषायकुशील कोटि सहस्र पृथक्त्व दो हजार करोड से लेकर नौ हजार करोड तक प्रति समय में होते हैं 'उक्कोसेण वि कोडिसहस्सपुत्त' और उत्कृष्ट से भी वे प्रति समय में कोटिसहस्रपृथक्त्व होते हैं। शंका--समस्त संयतों का प्रमाण कोटि सहस्र पृथक्त्व अन्य शास्त्रों में सुना जाता है परन्तु यहां तो केवल कषाय कुशीलों को ही कोटि सहस्र पृथक्त्व कहागया है और जब इसमें पुलाकादिकों की संख्या मिलादेते हैं तो स्वभावतः यह संख्या और अधिक हो जाती है । अतः कोटिसहस्र पृथक्त्व का कथन विरुद्ध पड़ जाता है। હોય તે જઘન્યથી એક પણ હોઈ શકે છે. એ પણ હોઈ શકે છે, અને ત્રણ ५ श छ. मन 'उक्कोसेणं सहस्मपुहुत्तं' टया । समयमा मे MPथी बनेन डा२ सुधी य छे. 'पुत्रपड़िवन्नए पडुच्च' तथा ५ प्रतिपन्न उपायशीनी अपेक्षाथी 'जहन्नेणं कोडिसयपुहत्त' धन्य ३५थी કષાયકુશીલે બે કરોડથી લઈને નવ કરોડ સુધી એક સમયમાં હોય છે, 'उक्कोंसेण वि कोडिसयपुहुत्त' भने ४थी ५ तम। ये समयमा २ मे કડથી લઈને નવ કરોડ સુધી હોય છે. શકા–સઘળા સયતનું કટિ સહસ્ત્ર પૃથફત બીજા શાસ્ત્રોમાં સાંભળવામાં આવે છે. પરંતુ અહિયાં તે કેવળ કષાયકુશીલને જ કેટિસહસ પૃથકત્વ કહેલ છે. અને જ્યારે તેમાં પુલાક વિગેરેની સંખ્યા મેળવવામાં શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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