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________________ २४८ भगवतीसूत्रे पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि' 'गोयमा' हे गौतम ! ' खाइए भावे होज्जा' क्षायिके भावे भवेत् स्नातक इति, अत्रौदयिक परिणामादि भावा मोक्ताः पुलाकत्वादिनिबन्धनानां चारित्रमोहक्षयोपशमादीनामेव विवक्षणादिति ३४ पञ्चत्रिंशत्तमं परिमाणद्वारमाह - 'पुलाया णं' इत्यादि, 'पुलाया णं भंते! एगसमरणं केवइया होज्जा ?' पुलाकाः खलु भदन्त ? एकसमयेन - एकस्मिन् समये इत्यर्थः कियन्तः कियत्संख्यका भवेयुरिति परिमाणद्वारे प्रश्नः भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, गोयमा' हे गौतम | 'पडिवज्जमाणए पहुच्च सिय अस्थि सिय नस्थि' प्रतिपद्यमानकान् प्रतीत्य तत्काले पुलाकभावसमासादयतोऽपेक्षया 9 'सिणार पुच्छा 'हे भदन्त ! स्नातक किस भाव में वर्त्तमान होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! खाइए भावे होज्जा' हे गौतम! स्नातक क्षायिक भाव में' वर्त्तमान होता है। यहां औदधिक पारिणामिक आदि भाव नहीं कहे गये हैं। क्यों कि पुलाकत्व आदि के कारण भूत चरित्रमोह के क्षयोपशम आदिकों की ही यहां विवक्षा हुई है भावद्वार का कथन समाप्त । ३५ वां परिमाण द्वार का कथन 'पुलाया णं भंते ! एगसमएणं केवइया होज्जा' गौतम ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है है भदन्त ! एक समय में कितने पुलाक होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि, सिय नत्थि' हे गौतम ! प्रतिपद्यमान उसी काल में पुलाक भाव को प्राप्त करने वाले पुलाक की अपेक्षा से एक समय 'खिणाए पुच्छा' हे भगवन् स्नात या लावभां वर्तमान होय छे ? उत्तरमां अनुश्री उडे छे है - 'गोयमा ! खाइए भावे होज्जा' हे गौतम ! स्ना તર્ક ક્ષાયિકભાવમાં વર્તમાન હાય છે. અહિયાં ઔદયિક પારિણામિક વિગેરે ભાવા કહ્યા નથી. કેમકે-પુલાકષણા આદિના કારણભૂત ચારિત્રમેહના ક્ષચેપશ્ચમ વિગેરેની જ અહિયાં વિવક્ષા થઇ છે. એ રીતે ભાવદ્વારનું કથન કહેલ છે, ભાવદ્વાર સમાપ્ત । હવે પાંત્રીસમાં પરિમાણુદ્રારનું કથન કરવામાં આવે છે.- 'पुलाया णं भंते! एगसमएणं केवइया होज्जा' श्रीगौतमस्वामीखे या સૂત્રપાઠદ્વારા પ્રભુશ્રીને એવું પૂછ્યું છે કે-હે ભગવન એક સમયમાં કેટલા પુલાક होय ? या प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री छे - गोयमा ! पडिवजमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि' हे गौतम! प्रतिपद्यमान न भणमा युवा ભાવને પ્રાપ્ત કરવાવાળા પુલાકની અપેક્ષાથી એક સમયમાં પુલાક કાઈ વાર શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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