________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ 3.6 सू०१३-३२ क्षेत्रद्वारनिरूपणम् 239 न्तीति प्रश्नः भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे 'गौतम' ! 'नत्यि एको वि' नास्ति एकोऽपि समुद्घातो निर्ग्रन्थस्य तथा स्वभावत्वादिति / 'सिणायस्स पुच्छा' स्नातकरय खलु भदन्त ! कति समुद्घाताः प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः, भग पानाह-'गोयमा' इत्यादि, ‘गोयमा' हे गौतम ! 'एगे केवलिसमुग्घाए पन्नत्ते' एकः केवलिस मुद्घात : प्रज्ञातः, स्नातकरय तथा स्वभावादेकः केवलिसमुद्घात एव भवति नान्य इति 31 / ___अथ द्वात्रिंशत्तमं क्षेत्रद्वारमाह-तत्र क्षेत्रम्-अवगाहनाक्षेत्रमाकाशप्रदेशः / 'पुलाए णं भंते !" पुलाकः र.लु भदन्त ! 'लोगस्स किं संखेज्जइभागे होज्जा' लोकस्य किं संख्येयभागे मवेत् अथवा 'असंखेज्जइ भागे होज्जा' असंख्येयभागे भवेत् अथवा-'संखेज्जेसु भागेसु होज्जा' संख्येयेषु भागेषु भवेत् अथा 'असंगौतम ! निर्ग्रन्थ के एक भी समुद्घात नहीं होता है। क्यों कि निर्ग्रन्थ का ऐसा ही स्वभाव होता है / 'सिणायस्स पुच्छा' हे भदन्त ! स्नातक के कितने समुद्घात होते हैं ? 'गोयमा' हे गौतम ! स्नातक के 'एगे केवलिसमुग्घाए पनत्त' केवल एक ही केलि समुद्घात होता है और समुद्घात नहीं होते हैं / समुद्घात बार समाप्त / 32 वें क्षेत्रद्वार का कथन क्षेत्र से यहां अवगाहना क्षेत्र जो कि आकाशप्रदेशरूप होता है गृहीत हुआ है 'पुलाए णं भंते ! लोगस्स कि संखेजहभागे होज्जा, असं खेज इभागे होज्जा' गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त! पुलाक लोक के संख्यातवें भाग में रहता है ? अथवा असंख्यातवें भाग में रहता है ? अथवा 'संखेज्जेसु भागेसु होज्जा' संख्यातभागों एक्को वि' गौतम! नि-यने मे 5 समुद्धात जाते. नथी. भ3निन्थन। स्वमा सवा डाय छे. 'सिणायस्स पुच्छा' मावन स्नातने सा समुद्धात। डाय छ 1 उत्तरमा प्रभुश्री छे - 'गोयमा ! गौतम! नाताले 'एगे केवलि समुग्घाए' 4 पक्षी समुद्धात . य छे. બીજા સમુદુધાતે હેતા નથી. એ રીતે આ મુદ્દઘાતકાર સમાપ્ત હવે 32 મા ક્ષેત્રકારનું કથન કરવામાં આવે છે. ક્ષેત્રથી અહિયાં અવગાહના ક્ષેત્ર કે જે આકાશ પ્રદેશ રૂપ હોય છે. तेनु ग्रह थये छे. 'पुलाए ण भंते ! लोगस्स किं संखेज्जइभागे होज्जा, असंखेज्जइभागे होज्जा' श्रीगीतमस्वामी प्रभुश्रीने ये पूछ्यु छ हैભગવન પુલાક લેકના સંખ્યામાં ભાગમાં રહે છે? અથવા અસંખ્યાતમાં भागमा 29 छ ? म 'संखेज्जेसु भागेसु होज्जा' सध्यातमागीमा 2 छ ? શ્રી ભગવતી સૂત્ર : 1