________________ 238 भगवतीसूत्रे पश्च समुद्घाता भवन्ति, 'तं जहा' तद्यया-'वेयणासमुग्घाए जाव तेया समुग्धाए' वेदनासमुद्घातो यावत् तैजससमुद्घातः यावत् पदेन कषायमारणान्तिकवैक्रि याणां त्रयाणां संग्रहो भवति 'एवं पडिसेवणाकुसीलेवि' एवं प्रतिसेवनाकुशील विषयेऽपि ज्ञातव्यं प्रतिसेवनाकुशीलस्यापि वेदनादिका स्तैजसान्ताः पश्च समुद् घाता भवन्तीति / 'कसायकुसीलस्स पुच्छा' कषाय कुशीलस्य खलु भदन्त ! कति समुद्घाताः प्रज्ञप्ता इति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'छ समुग्घाया पन्नत्ता' षट् समुद्घाताः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा'वेयणासमुग्घाए जाव आहारगसमुग्घाए' वेदना समुद्घातो यावदाहारकसमुद्घाता, यावत्पदेन कषायादीनां चतुर्णा समुद्घातानां संग्रहो भवति-तथा च वेदनासमुद्घातादारभ्याहारकसमुद्घातान्तषट् समुद्घातवान् कषायकुशीलो भवतीति / 'णियंठस्स णं पुच्छा' निर्ग्रन्थस्य खलु भदन्त ! कति समुद्घाना भव हे गौतम ! यकुश के पांच समुद्घात होते हैं / 'तं जहा' जो इस प्रकार से है-वेदना समुदान 1, कषायसमुद्यात 2, मारणान्तिक समुद्घात३, वैक्रिय समुद्घात 4 और तैजस समुद्घात 5 'एवं पडिसेवणाकुसीलेवि' प्रतिसेवनाकुशील के भी ये ही पांच समुद्घात होते हैं। 'कसाय. कुसीलस्स पुच्छा' हे भदन्त ! कषाय कुशील साधु के कितने समुद्घात होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! छ समुद्घाया पन्नत्ता' हे गौतम ! कषायकुशील साधु के छ समुद्घात होते हैं। 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं-वेदना 1 कषाय 2 मारणान्तिक 3 वैक्रिय समुद्घात 4 तैजस समुद्घात 5 और आहारक समुद्घात 6 / __णियंठस्स णं पुच्छा' हे भदन्त ! निर्गन्ध के कितने समुदघात होते हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! नत्थि एक्को वि' हे गीतम! मयने पांय समुधात जाय छे. 'त जहा' ते या प्रभारी छे. વેદના સમુદ્ઘતિ 1 કષાયસ મુદ્દઘાત 2 મારણાન્તિક સમુદ્દઘાત 3 વિક્રિયસમુદ્દઘાત 4 मन समुद्धात 5 'एव पडिसेवणाकुसीले वि' से प्रभारी प्रतिसेवना सुशासने 5 से पांय समुद्धात डाय छे. 'कसायकुधीलस्स पुच्छा' षाय કુશીલ સાધુને કેટલા સમુદ્રઘાત હોય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે छ है-'गोयमा छ स मुग्घाया पन्नत्ता' गौतम! पायाशीस साधुने 67 समहात। डाय छे. ‘त जहा' ते प्रभारी छे-वहनासमुद्धात 1 उपाय સમઘાત 2 મારણતિક સમુદ્દઘાત 3 વૈક્રિયસમુદ્દઘાત 4 તૈજસસમુદ્દઘાત 5 मन माख२४ समुद्धात ‘णियंठस्स णं पुच्छा' सा नियन tan समुदधात खाय छ 1 मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ-'गोंयमा! नस्थि શ્રી ભગવતી સૂત્ર : 16