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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०१२-२९ कालद्वारनिरूपणम् २२९ कषायकुशीलोऽपि विज्ञेयः, तत्र प्रतिसेवनाकुशीलः जघन्येन अन्तर्मुहूर्तमुत्कर्षणदेशोना पूर्वकोटि यावदतिष्ठने इति । कषायकुशीनोऽपि जघन्येनान्तर्मुहूर्तम् उत्कर्षतो देशोनपूर्वकोटिवर्ष यादवष्ठिते इति । 'णियंठे गं पुच्छा' निर्ग्रन्या खलु भदन्त ! कालतः किचिरं भवतीति पृच्छा-प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं एक समय जघन्येन एकसमयम् उपशान्तमोहस्य प्रथमसमयसमनन्तरमेव मरणसंभवेन एकसमयमात्रकथितम् 'उकोसेणं अंतोमुहत्तं' उवर्षेण अन्तर्मुहूर्त यावदवतिष्ठते निन्याद्धाया एवं प्रमाणत्वादिति । 'सिणाए पुच्छ।' स्नातकः खलु भदन्त ! काला कियच्चिरं भव. 'एवं पडिसेवणाकुसीले वि कसायकुसीले वि' इसी प्रकार का कथन प्रतिसेवनाकुशील और कषायकुशील के सम्बन्ध में भी जानना चाहिये अर्थात् ये दोनों भी जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से कुछ कम एक पूर्वकोटि तक रहते हैं । 'णियंठे णं पुच्छा' हे भदन्त ! निन्य काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्को सेणं अंतोमुटुतं' हे गौतम ! निर्ग्रन्य जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त तक रहता है। यहां जो निर्ग्रन्थ के रहने का काल एक समय का जघन्य से कहा गया है सो उसका कारण ऐसा है कि उपशान्तमोह वाले निम्रन्थ की प्रथम समय के समनन्तर ही मरण की संभावना होती है। तथा निर्ग्रन्थ अवस्था का उत्कृष्ट काल एक अन्तर्मुहूर्त का होता है इसलिये उत्कृष्ट से वह इतना कहा गया है । 'सिणाए पुच्छा' हे कुसीले वि कसायकुसोले बि' मा प्रभायेनु ४थन प्रतिसेवनाशील भने કષાય કુશીલના સમ્બન્ધમાં પણ જાણવું જોઈએ અર્થાત્ એ બને પણ જઘન્યથી એક અન્તર્મુહૂર્ત સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક કમ એક પૂર્વકેટી સુધી २९ छे. 'णियंठे गं पुच्छा' 8 भगवन् निश्रय जनी अपेक्षाथी सा सुधा २७ छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रमुश्री छ -'गोयमा! जहन्नेण एक्क' समय उनकोसेणं अंतोमुहुत्त', गौतम ! निन्य धन्यथा मे સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી અંતર્મુહૂર્ત સુધી રહે છે અહિયાં નિગ્રંથને રહેવાનો કાળ જે જઘન્યથી એક સમયને કહ્યો છે, તેનું કારણ એવું છે કેઉપશાન્ત કેહવાળા નિગ્રન્થના મરણની સંભાવના પ્રથમ સમયના સમનન્તર જ -તુરત જ થાય છે. તથા નિગ્રન્થ અવસ્થાને ઉત્કૃષ્ટ કાળ એક અંતર્મુહર્તાને सराय छे. तथा Greी तन मे उस छ. 'सिणाए पुच्छा' 8 सन्
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬