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भगवतीसूत्रे स्वभावस्येति । 'बउसे पुच्छा' बकुशः खलु भदन्त ! कालाः कियचिरं भवतीति पृच्छा प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं एक समयं जघन्येन एकं समयम् 'उक्कोसेणं देखूणा पूचकोडी' उत्कर्षेण देशोना पूर्वकोटिर, बकुशस्य चारित्रप्राप्ते रनन्तरसमये एव मरणस्य संभवेन जघन्येन एकं समयमिति कथितं तथा पूर्वकोटयायुष्कः अष्टवर्षानन्तरं नवमे वर्षे चारित्रं गृह्णाति तदपेक्षया किश्चिन्न्यूनपूर्वकोटिवर्षकाल उत्कर्षेण कथित इति । एवं पडिसेवणाकुसीलेवि कसायकुसोलेवि' एवम्-बकुशवदेव प्रतिसेवनाकुशीलोऽपि महीं हो जाता है तब तक पुलाकता को प्रतिपन्न हुआ जीव न मरता है और न पुलाक अवस्था से पतित होता है। इस कारण जघन्य और उत्कृष्ट काल इसका एक अन्तर्मुहूर्त का कहा गया है। ___ 'बउसे पुच्छ।' हे भदन्त ! बकुश काल की अपेक्षा कितने काल तक रहता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुब्धकोडी' हे गौतम ! काल की अपेक्षा बकुश जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से कुछ कम एक पूर्वकोटि तक रहता है। यहां जो बकुश का जघन्य से एक समय का काल कहा गया है उसका कारण ऐसा है कि बकुश के चारित्र प्राप्ति के बाद तुरत ही मरण होने की संभावना रहती है । तथा पूर्व कोटि की आयुवाला आठ वर्ष के बाद नौ वें वर्ष में चारित्र ग्रहण कर लेता है इस अपेक्षा उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्व कोटि का कहा गया है। થતું નથી, ત્યાં સુધી પુલાકપણામાં રહેલા છે. મરતા નથી, તથા મુલાક અવસ્થાથી પતિત પણ થતા નથી. તે કારણથી જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂર્તકાળ તેમને કહેલ છે.
'बउसे पुच्छा' 8 सन् ५४ जनी अपेक्षा ८८ ॥ सुधी हेछ १ मा प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री 3 छ -'गोयमा ! जहन्नेणं एक्क समय उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी' 3 गौतम ! जनी अपेक्षाथी मश જઘન્યથી એક સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી કંઈક એ છે એક પૂર્વકેટી સુધી રહે છે. અહિયાં બકુશને જઘન્યથી એક સમયને કાળ કહ્યો છે, તેનું કારણ એ છે કે-બકુશને ચારિત્ર પ્રાપ્તિ પછી તરત જ મરણ થવાની સંભાવના રહે છે, અને પૂર્વ કેટીની આયુષ્યવાળા આઠ વર્ષને અને ચારિત્રગ્રહણ કરી લે छ. ते अपेक्षायी ४४४ ४भ से पूटीन। यो छ, 'एव पडिसेवणा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬