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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ. ६ सू०९ अष्टादश कषायद्वार निरूपणम् १७३ गौतम ! कषायी भवति नो अकषायी यदि सकपायी तदा स कतिषु कषायेषु भवेत् गौतम । क्रोधमानमायालोभेषु चतुर्षु कपायेषु भवेत् कपायचतुष्टयवान् भवतीत्यर्थः ' कसायकुतीलेणं पुच्छा' कषायकुशीलः खलु भदन्त ! किं सकषायी भवेत् अकषायी वा भवेदिति पृच्छा - प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'सकसाई होज्जा - णो अकसाई होज्जा' सकषायी भवेत् नो अकषायी भवेत् । 'जः सकसाई होज्जा' यदि कषायकुशीलः सकपाथी भवेत् 'से णं भंते!' स खलु भदन्त ! 'कइसु कसारसु होज्जा' कविषु कषायेषु भवेत्, 'गोयमा हे गौतम ! 'चउवा तित्रा दोसु वा एगंमि वा होज्जा' चतुर्षु वा कषायेषु त्रिषुया द्वयोर्वा एकस्मिन् वा कषाये भवेत्, 'चउसु होमाणे' चतुर्षु कषायेषु भवन् 'उसु संजळण को हमाणमायालोमेसु होज्जा' चतुर्षु संज्वलनक्रोधमानमायालो भेषु कषायों वाला होता है । 'कसायकुसीलेणं पुच्छा' हे भदन्त ! कषायकुशील साधु कषायवाला होता है ? अथवा कषायरहित होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोपमा ! सकसाई होता, णो अकसाई होज्जा' हे गौतम ! वह कषायवाला होता है कषायरहित नहीं होता है 'जइ सकसाई होज्जा' हे भगवन् ! यदि वह कषाय वाला होता है तो 'कइसु कसाए होज्जा' कितनी कषायों वाला होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोयमा ! चउसु वा तिसु वा दोसु वा एर्गमि वा होज्जा' हे गौतम! वह कषाथकुशील साधु चार कषायोंवाला भी हो सकता हैं, तीन कषायों वाला भी हो सकता है, दो कषायबाला भी हो सकता है और एक कषायवाला भी हो सकता है 'चउसु हो माणे' जब वह चारकषायोंवाला होता है तो 'चउसु संजलणको हमाण - छे. 'कलायकुसीले णं पुच्छा' हे भगवन् उषाय सुशील साधु उषायवाजा होय છે ? અથવા કષાય વિનાના ઢાય છે ? આ પ્રનના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી કહે છે }- 'गोयमा ! सकसाई होज्जा, णो अकसाई होज्जा' हे गौतम ! ते उपायबाजा होय छे, उषाय विनाना होता नथी, 'जइ सकसाई होज्जा' के लगवन् ले सऊषायी - उषायवाला होय छे ? तो 'कइसु कसाएस होज्जा' डेंटला उषायोवाजा होय है? या प्रश्नना उत्तरभां प्रभुश्री छे हैं - 'गोयमा ! चउसु वा तिसु वा दोसु वा एगंमि वा होज्जा' हे गौतम! उपाय सुशील साधु यार उषायवाला પણ હાય છે, ત્રણ કષાયેાવાળા પણ હાય છે, એ કષાયાવાળા પણ હાય છે, उषायवाजा पशु होय छे. 'चउसु होज्जमाणे' न्यारे ते यार उपायबाजा होय छे, तो 'चउसु संजलण को हमाणमायालोभेसु होज्जा' संभवलन माने શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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