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भगवतीसरे नाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'णो हीणे तुल्ले णो अन्महिए' मोहीनो भवति सजातीयनिर्ग्रन्थेभ्यो निग्रन्थः, किन्तु तुल्या-समएव भवनि नना अधिकोऽपि भक्तीति । एवं सिणायस्स वि' एवम-सजातीयनिर्ग्रन्थवदेव स्नातकेभ्योऽपि निर्मन्थो न हीनो भवति नवाऽधिको भवति किन्तु तुल्य एव भवनीति । 'सिणार णं भंते ! पुलागस्स परट्टाणसन्निगासेणं.' स्नातकः खल भदन्न ! पुलाकस्य परस्थानसन्निकर्षेण चारित्रपर्यायैः किं हीनो भवति तुरखो मरति अधिको वा भवतीति प्रश्ना, उत्तरमाह-एवं जहा' इत्यादि, 'एवं जहा. णियंठस्स वत्तम्बया तहा सिणायस्स विभाणियबा' एवं यथा निन्यस्य वक्तव्यता तथा स्नातकस्यापि भणितव्या, यथा निग्रन्थस्य पुलाकापेक्षया चारित्रपर्याये. रभ्यधिकत्वं कथितं तथैव स्नातकस्यापि विजातीयपुळाकापेक्षया अनन्तगुणाधिक त्वं वदता निम्रन्थप्रकरणमनुस्मरणीयम् कियापर्यन्तं निर्गन्धप्रकरणमिह वक्तव्यं उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! णो हीणे, तुल्छे, णो अम्माहिए' हे गौतम ! निन्थ अपने सजातीय अन्य निर्गन्धों की चारित्रपर्यायों दारा तुल्य ही होता है। हीन अथवा अधिक नहीं होता है। 'एवं सिणायस्स वि' इसी प्रकार वह निर्ग्रन्थ स्नातक की चारित्र पर्यायों से भी समही होता है, हीन अथवा अधिक नहीं होता है। __'सिणाए णं भंते ! पुलागस्त संनिगासे गं' हे भदन्त ! स्नातक पुलाक रूप परस्थान की चारित्रपर्यायों की अपेक्षा हीन होता है ? अथवा बराबर होता है ? अथवा अधिक होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'एवं जहा णियंठस्स बत्तव्यया तहामिणायस्स विभाणियव्वा' हेगौतम ! जिस प्रकार से निग्रेध में पुलाक की अपेक्षा चारित्रपर्यायों को लेकर अधिकता कही गई है उसी प्रकार स्नातक में भी विजातीय पुलाक की अपेक्षा अनन्तगुण अधिकता कहनी चाहिये और यह छ -'गोयमा! जो होणे, तुल्ले, जो अब्भहिए' गौतम ! निन्थ पोताना સજાતીય બીજા નિના ચારિત્ર પર્યાય દ્વારા તુલ્ય જ હોય છે. હીન અથવા अघि साता नथी. 'एव निणायस्स वि' का प्रमाणे निन्थ, स्नातना ચારિત્ર પર્યાથી પણ સમ જ હોય છે. હીન અથવા અધિક હોતા નથી. 'मिणाएणं भंते ! पुलागस्त परद्वाणसं निगासेणं' है मगन् स्नात, ya४३५ પરસ્થાનના ચારિત્ર પર્યાયાની અપેક્ષાથી હીન હોય છે? અથવા બરાબર હોય
१ मा अघि हाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छ -'एवं जहा णियंठस्स वत्तव्वया तहा सिणायस्स वि भाणियव्वा, गौतम ! २ प्रमा નિગ્રન્થમાં મુલાકની અપેક્ષાથી ચારિત્ર પર્યાને લઈને અધિકપણું કહ્યું છે, એજ પ્રમાણે સ્નાતકમાં પણ વિજાતીય પુલાકની અપેક્ષાથી અનંતગણ અધિક
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬