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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३५ उ.६२०८ पञ्चदशं निकर्षद्वारनिरूपणम् १५७ कदाचित् सजातीय बकुशान्तरात् बकुशस्तुल्यः समानपरिणामत्वात् स्यात्-कदाचिन् अधिकः विशुद्धपरिणामत्वात् 'जइ हीणे छट्ठाणवडिए' यदि बकुशाद् बकुशो हीनो भवेत्तदा षट्स्थानपतितः अनन्तभागहीनः१, असंख्येअभागहीनः२, संख्येयभागहीनः३, संख्येयगुणहीन:४, असंख्येयगुणहीन:५, अनन्तगुणहीन ६ इति । 'बउसे णं भंते ! पडि सेवणाकुसीलस्स परट्ठाणसंनिगासेणं चारित्तपज्जवेहि कि होणे' बकुशः खलु भदन्त ! प्रतिसेवनाकुशीलस्य परस्थानसन्निकर्षेण चारित्रपर्यायैः किं हीन स्तुल्योऽधिकोवेति प्रश्ना, उत्तरमाह-'छहाण' इत्यादि, 'छटा णवडिए' षट्स्थानपतितः, अनन्तभागहीनोऽसंख्येयभागहीनः संख्येयभागहीन: वह अविशुद्ध परिणामों की अपेक्षा से होता है, तुल्य वह समान परिणामों से युक्त होने के कारण होता है और अधिक विशुद्ध परि. णामों के कारण होता है। 'जह हीणे छठ्ठाणवडिए' यदि एक बकुश दूसरे सजातीय से हीन होता है तब वह षट्स्थान पतित होता हैअर्थात् एक बकुश दूसरे सजातीय बकुश से या तो अनन्तभाग दीन होता है १ अथवा असंख्यात भाग हीन होता है २ अथवा संख्यात भाग हीन होता है ३ अथवा संख्यातगुण हीन होता है ४, अथवा असंख्यातगुण हीन होता है ५ अथवा अनन्तगुण हीन होता है ।
इसी प्रकार अधिक से भी षटू स्थानपतितता कह देनी चाहिये।
'बउसे णं भंते ! पडिप्लेषणाकुसीलस्स परट्ठाणसंनिगासेणं चारित्त. पज्जवेहि सिंहीणे' हे भदन्त ! बकुशविजातीय प्रतिसेवना कुशील की चारित्रपर्यायों से हीन होता है ? अथवा तुल्य होता है ? अथवा अधिक होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-छट्ठाणबडिए' हे પરિણામોની અપેક્ષાથી હીન હોય છે. સમાન પરિણામે યુક્ત હોવાને કારણે ते तुइय डाय छे. अने विशुद्ध परिणामाने ४२0 ते अधि: डाय छे. 'जइ हीणे सट्टाणवडिए' ले त म मीn सतीथी डीन डाय छे, त्यारे त છ સ્થાનેથી પતિત થાય છે. અર્થાત્ એક બકુશ બીજા સજાતીય બકુશથી અનન્તભાગ હીન હોય છે. ૧ અથવા અસંખ્યાતભાગ હીન હોય છે ૨ અથવા સંખ્યાતભાગ હીન હોય છે ૩ અથવા સંખ્યાતગુણ હીન હોય છે. ૪ અથવા અસંખ્યાતગુણ હોય છે. ૫ અથવા અનંતગુણ હીન હોય છે. ૬
'बउसेणं भंते ! पडिसेवणाकुशीलस्स परद्वाणसनिगासेणं चारित्तपज्जवेहि कि होणे०' ३ मा पga laonilu प्रतिसेवनाशीसनी यारित्र पायाथी હીન હોય છે? અથવા તુલ્ય હોય છે? અથવા અધિક હોય છે? આ પ્રશ્નના
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬