SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेययन्द्रिका टीका श०२५ ३.६ सू०८ पञ्चदशं निकर्षद्वारनिरूपणम् १५१ प्रथमपुलाकस्य स्वस्थानसभिकर्ष इति । 'संखेम्जइ भागमम्महिए वा' संख्येय. भागाभ्यधिको वा भवेत् । यस्य पुलाकस्य कल्पनया नवसहस्रपमितम् (९०००) चरणपर्यवपरिमाणं तत् प्रथमस्य चरणपर्यवपरिमाणात् (१००००) संख्येयभागापिका स्वस्थानसभिकर्ष इति । 'संखेनगुणममहिए वा' संख्येयगुणाधिको वा भवेत, यस्य पुलाकस्य चरणपर्यवपरिमाणं सहस्रमानम् (१०००) नदपेक्षया मथमस्य चरणपर्यवपरिमाणम् (१००००) संख्येयगुणाधिकमिति संख्येयगुणा. धिकः स्वस्थानसन्निकर्ष इति । 'असंखेज्जगुगममहिए वा' असंख्येयगुणाभ्यधिको वा भवेत् तथा यस्य पुगस्य चरण पर्यवपरिमाणं कसनया शतद्वयं, तदा पेलया प्रथमस्यासंख्येयगुणाधिकः स्वस्थानसन्निकर्षति । 'अणंतगुणमम. हिए वा' अनन्तगुणाभ्यधिको वा भवेत् । तथा यस्य पुलाकस्य चरणपर्य परिमाणं कल्पनया शपरिमितं, तदपेक्षयाऽऽचस्य (१००००) अनन्तगुणाधिका के जो १०००० चारित्र पर्यवरूप परिणाम हैं वे असंख्यात भाग अधिक हैं। 'संखेज्जइ भागमभहिए वा' इसका तात्पर्य ऐसा है कि जिसके ९००० प्रमित चारित्र पर्याये हैं वे प्रथम के चारित्र पर्यव परिणामों की अपेक्षा-१००० परिणामों की अपेक्षा-संख्यात भाग अधिक हैं। 'सखे. ज्जगुणमम्महिए वा' इसका तात्पर्य ऐसा है-जिस पुलाक के चारित्र पर्यायों का प्रमाण १००० है उसकी अपेक्षा प्रथम के चारित्र पर्यायों का प्रमाण जो १०००० हैं वह संख्यातगुण अधिक है। 'असंखेज्जगुण. मम्महिए वा 'इसका तात्पर्य ऐसा है-जिस पुलाक के चारित्र पर्यायो का प्रमाण २०० है इसकी अपेक्षा प्रथम के जो चारित्र पर्यायों का प्रमाण है वह असंख्यातगुणित अधिक है। 'अणंतगुणमा पहिए वा' इसका तात्पर्य ऐसा है-कि जिस पुलाक के चारित्र पर्यायों का प्रमाण જે ૧૦૦૦૦) દસ હજાર ચારિત્ર પર્યવરૂપ પરિમાણ છે, તે અસંખ્યાતભાગ पधारे छे. 'संखेज्जहभागममहिए वा' मा ४थननु तात्५ मे छे -२२ ૯૦૦૦) નવ હજાર અમિત ચારિત્ર પરિમાણ છે. તે પહેલાના ચારિત્ર પર્યાવ परिक्षामानी अपेक्षाथी सभ्यात ना धारे छे. 'संखेज्जगुणमब्भहिए वा' આ કથનનું તાત્પર્ય એવું છે કે-જે પુલાકના ચારિત્ર પર્યાનું પ્રમાણ ૧૦૦૦) એક હજારનું છે. તેના કરતાં પહેલાના ચારિત્ર પર્યાનું પ્રમાણ २ १००००। इस डरनु छ, ते सध्यात पारे . 'असंखेनगुणममहिए वा मा थननु तात्५५ मे छे - माउन यारित्र पर्यायानु પ્રમાણ ૨૦૦ બસો હોય તે અપેક્ષાથી પહેલાના ચારિત્ર પર્યાનું જે પ્રમાણ छ. ते स यात धारे छे. 'अणंतगुणमन्महिए वा' ५। थनतुं ताप' શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy