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________________ १३२ मगवतीस स्पधमानन्य कियत्कालपर्यन्तं स्थितिः प्रज्ञप्तेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्नेणं पलिभोवमपुहुत्त' जघन्येन पल्योपम पृथक्त्वम् द्विपल्योपमादारभ्य नव पल्योपमं यावत् 'उकोसेणं अट्ठारससागरोवमाई' उत्कर्षेणाऽष्टादश सागरोपमाणि जघन्योत्कृष्टाभ्यां पल्योपमपृथक्त्वाऽष्टादश सागरोपमपरिमिता स्थिति भवतीत्यर्थः । 'बउसस्स पुच्छ।' बकुशस्य देवलोकेषु समुत्पद्यमानस्य कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्तेति पृच्छा-प्रश्नः । भगवानाह'मोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्ने पलिओवमपुहुत्तं' जघन्येन पल्योपमपृथक्त्वम् द्विपल्योपमादारभ्य नव पल्योपमपर्यन्तमित्यर्थः, 'उक्कोसेणं वावीसं सागरोवमाई' उत्कर्षेण द्वाविंशतिः सागरोपमाणि ‘एवं पडिसेवणा कुसीले गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा पूछा है-हे भदन्त ! देवलोक में उत्पन्न हुए पुलाक की कितने काल तक की स्थिति कही गई है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमपुष्टुत्तं, उक्को. सेणं अट्ठारससागरोवमाई' हे गौतम ! देवलोक में उत्पन्न हुए पुलाक की स्थिति जघन्य से पल्पोपम पृथकाव की दो पल्योपम से लेकर नौ पस्योपम तक की और उत्कृष्ट से १८ सागरोपम की कही गई है। 'पउसस्स पुच्छ।' हे भदन्त ! देवलोक में उत्पन्न हुए बकुश साधु की कितने काल की स्थिति कही गई है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैंगोयमा ! जहन्ने णं पलिओवमपुहत्तं उक्कोसेणं बाबीसं सागरो. धमाई' हे गौतम ! जघन्य से बकुश की देवलोक में आयु पल्योपम पृथक्त्व की होती है और उस्कृष्ट से २२ सागरोपमकी होती है। પ્રભુશ્રીને એવું પૂછયું છે કે-હે ભગવદ્ દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થનારા ખુલાકની સ્થિતિ કેટલા કાળ સુધીની કહી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી गौतमस्काभान ४९ छे ई-गोयमा ! जहण्णेणं पलि भोवमपुहुत्तं उकोसेणं अदारससागरोदमाई' गौतम! हेवोभन यना। ५मानी સ્થિતિ જઘન્યથી પ પમ પૃથફત્વની એટલે કે બે ૫૫મથી નવા ५८यापम सुधीनी म२ टिथी मदार सागरामनी ही छ. 'बउससे જુદા” હે ભગવન દેવલોકમાં ઉત્પન્ન થનારા બકુશ સાધુની સ્થિતિ કેટલા जनी ४ी छे १ प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री ४ छ -'गोयमा ! जहन्नेणं पलिओवमपुहुत्तं उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई' हे गौतम ! धन्यथा બકુશનું દેવલેક સંબંધી આયુષ્ય એક પલ્યોપમ પૃત્વનું હોય છે. અને Geथी २२ मावीस सागरा५मनु य छे. 'एवं पडिसेवणाकुसीले वि' શ્રી ભગવતી સુત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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