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________________ ११८ भगवतीसूत्रे बकुशवदेव वक्तव्य इत्यर्थः, 'एवं कसायकुसीले वि' एवं बकुशवदेव कषायकुशीलोsपि वक्तव्यः | 'णियंठो सिणाओय जहा पुलाओ' निर्ग्रन्थः स्नातकव यथा पुलाकः, पुलाकनदेव एतौ निर्ग्रन्थस्नातको वक्तव्यौ इत्यर्थः । पुळाकापेक्षया एतयोर्वैलक्षण्यं पुनराह - 'णवरं' इत्यादि, 'नवरं एएसि अमहियं साहरणं भाणियब्वं' नवरम् - केवलम् एतयो निग्रन्थस्नातकयो रम्यधिकं संहरणं भणितव्यम् पुलाकस्य पूर्वोक्तरीत्या संहरणं न भवतीति कथितम् - एतयोश्च संहरणं संभवतीति कृत्वा संहरणं वक्तव्यम् - निर्ग्रन्थस्नातकयोः संहरणापेक्षया सर्वकाले सद्भावः कथितः असौ पूर्वसंहृतयो निग्रन्थस्नातकत्वमाप्तौ सत्यमेव तदपेक्षया ज्ञातव्यः, यतो वेदरहितानां साधूनां संहरणं न भवतीति तदुक्तम् " 1 में किया गया है सो इसी प्रकार का कथन प्रतिसेवना कुशील के सम्बन्ध में भी करना चाहिये। 'एवं कलायकुसीले वि' कषाय कुशील के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कथन जानना चाहिये । 'णियंठो सिणाओ य जहा पुलाओ' पुलाक साधु के कथन के जैसा कथन निर्ग्रन्थ और स्नातक साधुओं के सम्बन्ध में करना चाहिये । परन्तु पुलाक के कथन की अपेक्षा जो इन दोनों के कथन में भिन्नता है वह इस प्रकार से है - 'णवरं एएसिं अमहियं साहरणं भाणिय' कि इनका संहरण अधिक कहना चाहिये । पुलाक का पूर्वोक्तरीति से संहरण नहीं होता है । ऐसा कहा गया है और इनका संहरण संभवित होता है अतः इनका संहरण कहना चाहिये। निन्य और स्नातक का संहरण की अपेक्षा सर्वकाल में सद्भाव कहा गया है सो यह पहिले संहृत हुए उनके निर्ग्रन्यावस्था की और स्नातक अवस्था की प्राप्ति हो जाने से પ્રમાણેનુ કથન કરવામાં આવ્યુ છે, એજ પ્રમાણેનું થન પ્રતિસેવના કુશી सना संधमां पशु हरवु कोई यो, 'एवं कसायकुसीले वि' उषाय सुशीलता सुमधमां पशु खेन प्रभाषेनुं उथन समवु' 'नियंठों क्षिणाओय जहा पुलाओ' પુલાક સાધુના કથન પ્રમાણેનુ' કથન નિગ્રન્થ અને સ્નાતક સાધુએના સંખ ધમાં કરવુ જોઈએ. પરંતુ પુત્રાકના કથનની અપેક્ષાથી આ બન્નેના કથનમાં भिन्नयागु छे. ते या प्रमाणे छे. 'णवरं पएसि अमहियं बाहरणं भाणियां ' તેમનું સહરણુ વધારે કહેવું જોઇએ. પુલાનું સહરણ પહેલાં કહ્યા પ્રમાણે હાતુ નથી. તેમ કહ્યું છે. તેઓનું સહરણુ સ`ભવિત હાય છે. તેથી તેઓનુ સ'હરણુ કહેવુ જોઈએ. નિગ્રંથ અને સ્નાતકના સ’હરણની અપેક્ષાથી સવ કાળમાં ભાવ કહેલ છે. તા પહેલા સ`હત થયેલા તેઓને નિથ અવસ્થાની શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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