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________________ भगवतीसो भदन्त ! कियत्संख्यकं श्रुममधीते इति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'जहन्ने णं अट्ठपचयणमायाओ' जघन्येन अष्टप्रव. चनमातृकाः 'उको सेणे चोदसपुयाई अहिज्जेज्जा' उत्कर्षेण चतुर्दशपूर्वाणि अधी. पीत जघन्येन अष्टप्रवचनमातृकापर्यन्तमकरणस्य अध्ययनं करोति, उत्कृष्टतस्तु चतुर्दशपूर्वपर्यन्तमधीते इति भावः । एवं गियंठेवि' एवम्-कषाय कुशीलवदेव निर्गन्यविषयेऽपि श्रुताध्ययनस्य परिज्ञानं कर्तव्यमिति। 'सिणाए पुच्छा' स्नातकः खलु भदन्त ! कियसंख्यकं श्रुतमधीते इति पृच्छा प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'मुयतिरित्ते होज्जा' श्रुतुव्यतिरिक्तो भवेत्श्रुताध्ययनरहितः स्नातको भवतीत्यर्थः । इति सप्तमं ज्ञानद्वारम् ।७।०३।। पुच्छा' हे भदन्त ! कसायकुशील साधु कितने श्रुन का अभ्यासी होता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! जहन्नेण अपवयण. मायाओ, उक्कोसेणं चोदसपुवाई अहिज्जेज्जा' हे गौतम ! कषाय कुशील साधु जघन्य से आठ प्रवचन मातृका रूप श्रुत का अभ्यासी होता है और उत्कृष्ट से वह चौदह पूर्वरूप श्रुत का पाठी होता है। 'एवं नियंठे वि' इसी प्रकार से निर्गन्ध भी जघन्य से और उत्कृष्ट से कषाय कुशील माधु के जैसा ही अष्ट प्रवचन भातृका पर्यन्त श्रुत को और चौदह पूर्वरूप श्रुन का अभ्यासी होता है। 'सिणाए पुच्छा' हे भदन्त ! स्नातक साधु कितने श्रुत का पाठी होता है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा। सुयतिरित्त होज्जा' हे गौतम : स्नातक साधु श्रुताध्ययन से रहित होता है । सप्तम ज्ञान द्वार समाप्त ॥सू० ३॥ हाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छे ४-'गोयमा! जहणेणं अटु पवयणमायाओ, उक्कोसेणं, चोदसपुव्वाइ', अहिज्जेज्जा' हे गौतम ! ४पाय કશીલ સધુ જઘન્યથી આઠ પ્રવચન માતા રૂપ મૃતના અભ્યાસી હોય છે. अन थी ते चौह पूर्व ३५ श्रतना अभ्यासी उय छे. 'एवं नियंठे वि' એજ પ્રમાણે નિગ્રંથ પણ જઘન્યથી અને ઉત્કૃષ્ટથી કષાય કુશીલ સાધુની જેમ જ આઠ પ્રવચન માતા પર્યન્તના શ્રતના અને ચૌદ પૂર્વ રૂપ શ્રતના भन्यासी डाय छे. 'सिणाए पुच्छा' हे भगवन् नात साधु a Qतना सयासी डाय छ ? 24. प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री -'गोयमा ! सुयवतिरित्ते होज्जा' है गौतम ! २नात साधु श्रुताध्ययन २हित हाय छे. છેસાતમું દ્વાર સમાપ્ત માસૂ૦ ૩ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬
SR No.006330
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 16 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages698
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size41 MB
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