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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१५ उ.६ सू०३ सप्तम ज्ञानद्वारनिरूपणम्
समितिगुप्तित्रयात्मकाष्टप्रवचनमातृकायाः पालनकरणमेव चारित्रम् अतश्चारित्रवता. मष्ट प्रवचनमातृकाणां परिज्ञानमावश्यकम् यतो ज्ञानपूर्वकमेव चारित्रम् ज्ञानं च श्रुतादेव संभवति नान्यथा अतोऽष्टमवचनरूपमाप्रतिपादनपरं श्रुतं बकुशस्य जघन्यतोऽपि भवतीति भावः । 'उको सेणं दसपुबाई अहिज्जेज्जा' उत्कर्षण दशपूर्वाणि अधीयीत उत्कृष्टतो दशपूर्वाणामध्ययनं बकुशस्य भरतीति भावः। ___ एवं पडिसेवणाकुसीले वि' एवम्-वकुशवदेव पतिसेवनाकुशीलोऽपि जघन्येनाष्ट प्रवचनमातृपकरणपर्यन्तं श्रुतमधीते उत्कर्षेण तु दशपूर्व दशपूर्वपर्यन्तमधीते इति भावः । 'कसायकुसीले णं पुच्छा' कषायकुशीला खलु प्रभुश्री कहते हैं-'गोयमा! जहन्नेणं अट्ठपवयणमायाओ' हे गौतम ! वकुश साधु कम से कम अष्ट प्रवचन माता के स्वरूप का प्रतिपादक श्रत का अभ्यासी होता है क्योंकि पांच समिति और तीन गुप्ति रूप आठ प्रवचन माता का पालन करना ही चारित्र है, अतः चारित्रवाले को आठ प्रवचन माता का परिज्ञान आवश्यक है। क्योंकि चारित्र ज्ञान पूर्वक ही होता है। और ज्ञान श्रुत से ही होता है। और किसी प्रकार से होता नहीं है । अतः यकुश को जघन्य से इतना ज्ञान तो होता ही है। 'उक्कोसेणं दसपुबाई अहिज्जेज्ना' तश वह वक्रश साधु उत्कृष्ट से दश पूर्व तक का पाठी होता है। एवं पडिसे वणाकुसीले वि' बकुश के जैसे प्रति सेवना कुशील भी जघन्य से आठ प्रवचनमातृका प्रकरण रूप श्रुत का अभ्यासी होता है और उत्कृष्ट से दश पूर्व तक के अत का अभ्यासी होता है। 'कसायकलीले હે ગૌતમ ! બકુશ સાધુ એાછામાં ઓછા આઠ પ્રવચન માતાના સ્વરૂપને પ્રતિપાદન કરવાવાળા શ્રતના અભ્યાસી હોય છે. કેમકે પાંચ સમિતિ અને ત્રણ ગુપ્તરૂપ આઠ પ્રવચન માતાનું પાલન કરવું તેજ ચારિત્ર છે. જેથી ચાન્નિવાળાને આઠ પ્રવચન માતાનું જ્ઞાન હોવું આવશ્યક છે. કેમકે ચારિત્ર જ્ઞાનપૂર્વક જ હોય છે. અને જ્ઞાન મૃતથી જ થાય છે. બીજા કેઈથી થત नथीथी मशन न्यथी मेट ज्ञान तो थाय छे. 'उक्कोसेणं दस पुबाई अहिज्जेज्जा' तथा ते मधु साधु थी इस पू सुधाना पाही हाय छे. 'एवं एडिलेवणाकुसीले वि' मना यन प्रभारी प्रतिसेवना કશીલ પણ જઘન્યથી આઠ પ્રવચન માતાના પ્રકરણ રૂપ શ્રતના અભ્યાસી डाय छे. सन थी ४० पूरी सुधीना श्रुतना ५८यासी डाय छ, 'कसायकुसीले णं पुच्छा' हे भगवन् उपाय अशी साधु डेटा श्रुतन मन्यासी
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૬