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भगवतीसूत्र अट्ठासीई वाससहस्साई' उत्कर्ष तोऽष्टशी तिर्ष सहस्राणि, 'चउहि अंतोमुहुत्तेहि अमहियाई” चतुर्भिरत मुहूरभ्यधिकानि, चतुरन्तर्मुहूर्ताधिकाष्टाशीतिवर्ष सहसात्मकः कालादेशेन उत्कर्षतः कायसंवेध इति चतुर्थपञ्चषष्ठगमाः ६ । सप्तमाष्टमनवमगमान् दर्शयितुमाह 'सो चेव अपणा उककोस.' इत्यादि, 'सो चेव अप्पणा उक्कोसकालट्टिइओ जाओ' स एव-द्वीन्द्रिय जीव एव आत्मना उत्कृष्ट कालस्थितिकोऽथ च पृथिवीकायिकेषु समुत्पन्नो भवेत् तदा 'एयस वि ओहियगमगसरिसा तिनि गमगा भाणियन्या' एतस्यापि स्वयमुत्कृष्ट स्थितिकहीन्द्रियजीवस्य पृथिवीकायिके उत्पित्सोरपि औधिकगमसदृशाः सामान्यगमतुल्यायो गमाः सप्तमाष्टभनवमलक्षणा भणितव्याः पठनीया इत्यर्थः। औधिकगमापेक्षया लक्षण्यं दशयन्नाह-'णवर' इत्यादि, ‘णवरं तिसु वि गमएसु' नवरम् केवलम् अष्टासीई वाससहस्साई' उत्कृष्ट से वह चार अन्तर्मुहूर्त अधिक २२ हजार वर्ष का है इस प्रकार से ये चतुर्थ पंचम एवं षष्ठ गम हैं। ___ अब सूत्रकार तृतीयत्रिक के ७ - ८ वें और ९ वें गमों को प्रकट करने के अभिप्राय से 'सो चेव अप्पणा उकोसकालटिइओ जाओ' ऐसा कहते है कि यदि वह बीन्द्रिय जीव उस्कृष्ट काल की स्थितिवाला है और पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होता है तो 'एयस्स वि ओहिय गमसरिसा तिमि गमगा भाणियठवा' इसके भी सामान्य गम के जैसे तीन गम सोतवां गम, आठवां गम और नौवां गम ये तीन गम कहना चाहिये पर उनकी अपेक्षा जो इन गमों में विशेषता है वह इस प्रकार से है कि 'णवर तिसु वि गमएसु०' इन ७वे आठवे और नौवें गमों में स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट से १२ वर्ष की होती है, तथा
१२ १५ प्रमानी छे. मने 'उक्कोसेण अट्ठासीइ वाससहस्त्राइ' उत्कृष्टथी ચાર અંતમુહૂર્ત અધિક-અઠયાસી હજાર વર્ષને છે. આ રીતે આ ચેાથે પાંચમ અને છઠ્ઠો ગમ કહ્યો છે. ૪-૬
હવે સૂત્રકાર ત્રીજા ત્રિકના સાતમા, આઠમા, અને નવમા ગમે પ્રગટ ४२१॥ भाट 'सो चेव अप्पणा एकको मकालदिइओ जाओ' मे प्रमाणुना सूत्र પાઠથી સૂત્રકાર એ બતાવે છે કે-જે તેઈદ્રિયવાળે જીવ ઉત્કૃષ્ટ કાળની स्थितिवाणी छ, भने पृथ्वीयम स्पन्न वानी छे, तो 'एयस्स वि ओहियगमसरिसा तिन्नि गमगा भाणियव्वा' माना ५५सामान्य गम प्रमाणेन
સાતમે, આઠમો અને નવમો, એ ત્રણ ગમો કહેવા જોઈએ. પરંતુ આ सीमापा . तमाशत छ-'णवर' तिसु वि गमएसु०' मा सातमा
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫