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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.३ सू०५ लोकस्य परिमाणनिरूपणम् ६८१ माह-'लोगागाससेढीओ णं भंते' लोकाकाशश्रेणयः खलु भदन्त ! 'दबाट्टयाए कि संखेज्जाओ, असंखेज्जाओ, अर्णताओ, द्रव्यार्थतया-द्रव्यरूपेण किं संख्याताः असंख्याताः अनन्तावा लोकाकाशसम्बन्धिन्यः श्रेणयो भवन्तीति प्रश्नः ? भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो संखेजाओ, असंखेज्जाभो नो अणंताओ' नो संख्याताः किन्तु असंख्याताः लोकाकाशश्रेणयः, न वा-अनन्ताः, इहाऽसंख्याता एव श्रेणयः असंख्यातमदेशात्मकत्वाल्लोकाकाशस्येति । 'पाईग. पडीणाययाओ णं भंते !" प्राचीमतीच्यायताः खलु भदन्त ! 'लोगागाससेदीओ' लोकाकाशश्रेणयः। 'दबट्ठयाए' द्रव्यार्थतया-द्रव्यरूपेण । 'किं संखेज्जाओ असंखेज्जायो अर्णताओ' किं संख्याता:-असंख्याना:- अनन्ताः। हे भदन्त । प्रभु श्री से ऐसा पूछा है-'लोगागाससेढीओ ण भंते ! व्वट्टयाए कि संखेज्जाओ असंखेज्जाओ अणताओं हे भदन्त ! लोकाकाश की जो प्रदेश पङ्क्तियां है वे द्रव्य की अपेक्षा से क्या संख्यात हैं ? अथवा असं. ख्यात हैं ? अथवा अनन्त है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं 'गोयमा! नो संखेज्जाओ असंखेज्जाओ, नो अणताओ' हे गौतम! लोकाकाश के प्रदेशों की जो पङ्क्तियां है वे संख्यात नहीं हैं अनन्त नहीं हैं किन्तु असंख्यात ही हैं। तात्पर्य इस कथन का यही है कि लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात कहे गये हैं इसलिये उनकी श्रेणियां भी असंख्यात ही हो सकती हैं अनन्त अथवा संख्यात नहीं। अनन्त श्रेणियां जो कही गई है वे सामान्य रूप से अलोकाकाश को लक्ष्य करके कही गई हैं क्योंकि अलोकाकाश के प्रदेश सिद्धान्तकारों ने अनन्त कहे हैं। 'पाईण पडीगाययाओ ण भंते ! लोगागाससेढीओ दव्वट्टयाए कि संखेज्जाओ.' हे भदन्त ! पूर्व से पश्चिम तक लम्बी जो विनय श्री गीतभाभी प्रभुश्रीने में पूछे छे ४-'लोगागाससेढीओ ण भंते ! दव्वदयाए कि संखेज्जाओ असखेजोओ अणताओ' सावन मोशनी જે પ્રદેશ પંક્તિ છે, તે દ્રવ્યની અપેક્ષાથી શું સંખ્યાત છે ? અથવા અસંખ્યાત છે? કે અનંત છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી ગૌતમ સ્વામીને
छ -'गोयमा ! नो संखेज्जाओ असंखेज्जाओ नो अगताओ' गौतम! લેકાકાશના પ્રદેશની જે પંક્તિ છે, તે સંખ્યાત નથી. તેમ અનંત પણ નથી પરંતુ અસંખ્યાત જ છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે કાકાશના પ્રદેશ અસં.
ખ્યાત કહ્યા છે. તેથી તેની શ્રેણી પણ અસંખ્યાત જ હોય છે. અનંત અથવા સંખ્યાત નથી. અનંત શ્રેણિયે જે કહી છે તે અલકાકાશને લક્ષ્ય કરીને કહેલ छ.भ-मसाशना प्रदेशी सिद्धांत मनत हा छ. 'पाईण. पडीणाययाओ ण भंते ! लोगागाससेढीओ दव्वदयाए कि संखेज्जाओ०' हे म.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫