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भगवती सूत्रे
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जहा' तद्यथा 'घणवट्टे य पयरवट्टे य' घनवृत्तं च प्रतरवृत्तं च, तथा च घनपतरभेदात् संस्थानं द्विविधमित्यर्थः । तत्र धनवृत्तं संस्थानं सर्वतः समं वृत्तं मोदकवत्, वाइल्यमाश्रित्य मतलं तदेव प्रतरवृत्तं शष्कुलीदिति (रोटी) ति लोकप्रसिद्धातद्वत् 'तत्थ णं जे से पथरचट्टे से दुबिहे पत्ते' तत्र द्वयोवृतयोर्मध्ये खलु यत् तत् मतरवृत्तनामकं संस्थानं तत् द्विविधम्-द्विमकारकं प्रज्ञप्तम्, 'नं जहा ' तद्यथा 'ओएसिए य जुम्मपसिए य' विषमसंख्यावाची 'ओज' शब्दोऽदग्नोऽपि, 'ओजो नोजः समः पादो' इति स्वामि- मुकुटपीयूषेषु व्यक्तम् । अमरनानार्थवों टीकायाम्' ओमप्रदेशिकं च युग्मप्रदेशिकं च तत्र विषमसंख्यक प्रदेश निष्यन्नमोजमदेशिकमिति कथ्यते तथा समसंख्यक प्रदेश निष्पन्नं युग्ममदेशिकं वृत्तं संस्थानमिति च कथ्यते इति । ' तत्थ णं जे से ओयपरसिए' तत्र खल्लु यत् तत् ओजपदेशिकं प्रतरवृत्तम् ' से जहन्नेर्ण पंचपए सिए पंचपरसोगाठे' तत् ओजप्रदेशिकं पनन्ते' हे गौतम! वृत्त संस्थान दो प्रकार का कहा गया है- 'तं जहा - जैसे 'घणवडे य, पपरबट्टे य' घनवृत्त और प्रतरवृत्त' जो संस्थान मोदक के जैसा सब तरफ से सम प्रमाणवाला होता है वह घनवृत्त संस्थान है । तथा जो संस्थान बाहुल्य मोटाई को लेकर रोटी के जैसा अत्यन्त पतला होता है वह प्रनरवृत्त संस्थान है। 'तत्थ णं जे से पथरवट्टे से दुबिहे पनते' उनमें जो प्रतरवृत्त संस्थान है वह दो प्रकार का है-'त जहा ' जैसे- 'ओपयएसिए य जुम्मपएसिए य' ओजप्रदेशिक और युग्मप्रदेशिक, यहां भोज शब्द विषम संख्यावाची है। इनमें जो विषम संख्पक प्रदेशों से निष्पन होता है वह ओज प्रदेशिक वृत्त संस्थान है और जो समसंख्यक प्रदेशों से निष्पन्न होता है वह युग्माप्रदेशिक वृत्त
हे गौतम ! वृत्त संस्थान मे प्रारनुं हुं छे. 'तं जहा' ते या प्रभा छे'घणवट्टे य पयस्वट्टे य' धनवृत्त रखने अंतरवृत्त के संस्थान मोहम् (साडु) नी માફક અધી તરફથી સરખા પ્રમાણુ વાળું હોય છે. તે ઘનવૃત્ત સસ્થાન છે, તથા જે સંસ્થાન માહુલ્ય-મેટાઈથી રોટલી જેવું અત્યંત પાતળુ હાય છે, તે पतरवृत्त संस्थान छे. 'तत्थ णं जे से पयरखट्टे से दुविहे पन्नत्ते' तेमां ने प्रतर वृत्तसंस्थान छे ते मे प्रगरतुं छे, 'तं जहा' ते भा प्रभाछे छे. 'ओयपए सिए य जुम्मपपलिए य' अहेशिक भने युग्मप्रदेशि यां योग शह विषय સખ્યા બતાવનારી છે. આમાં જે વિષમ સંખ્યાવાળા પ્રદેશેામાંથી ઉત્પન્ન થાય છે, તે આજ પ્રદેશિક વૃત્ત સંસ્થાન છે. અને જે સમ સખ્યાવાળા अहेथेोथी उत्पन्न थाय छे. ते युग्म अहेशवृत्त संस्थान हे. 'तत्थ णं जे से
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫