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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.१२ सू०२ अष्कायिके पृथ्वीकायादीनामुत्पत्तिः ३९ उत्पद्यन्ते तदा किं सुहुन आउ काइय रगिदियतिरिक्ख नोणिएहिंतो उववज्जंति'
सूक्ष्माका केन्द्रिय तिर्यग्योनि केभ्य आगस्थोत्पद्यन्ते अथवा 'वायरआउकाइयएगिदियतिरिक्त्रोणिएहिंतो उबवज्जंति' बादर. कायिकै केन्द्रियतिर्ययोनिकेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते ? हे भदन्त | यदि पृथिवीकायको जीवः अकायिकेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य आगत्य पृथिव्यां समुत्पन्नो भवति तदा किं सूक्ष्माका थिकै केन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्पद्यते अथवा बादराकायिकै केन्द्रियतिर्ययोनिकेभ्य आगत्य पृथिव्यां समुत्पद्यते इत्यर्थः एवं चउको भेओ माणियब्बो जहा पुढवीकाइया' एवं चतुष्कको भेदः सूक्ष्मवादरयोः पर्याप्ताऽपर्याप्तक भेदरूपः यथा सूक्ष्माष्कायिकेभ्यो बादराकाधिकेभ्यः पर्याप्त के योऽपर्याप्तकेभ्य इत्यर्थः भणितव्यो यथा पृथिवीकायिकानाम्। 'आउक्काइए णं भंते !' अकायिकः खलु भदन्त | 'जे भत्रिए पुढवीकाइपसु उववज्जित्तए' यो भव्यः पृथिवीकायि के त्पतुम् ' से गं भंते' स खलु मदन्त ! 'केवइयकालट्ठिएस उववपृथ्वी में उत्पन्न होता है तो हे भदन्त ! 'किं सुहुम आउकायएगिंदिथतिरिक्खजोणिएदितो' उववज्जंति, बायरआ उक्काश्यप गिंदियतिरि०' वह क्या सूक्ष्म अष्कायिक एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिक से आकर के पृथिवीकाfor रूप से उत्पन्न होता है अथवा बादर अप्रकायिक एकेन्द्रियतिर्यग्योनिक से आकरके पृथिवीकायिक रूप से उत्पन्न होता है ? ' एवं arrer भेओ भाणियन्यो जहा पुढवीकारयाणं' इस प्रकार पृथिवीकायिक के जैसा सूक्ष्म बादर पर्याप्त और अपर्याप्त ये चार भेद यहां कहना चाहिये
अब गौतम प्रभुसे ऐसा पूछते हैं- 'आउक्काइए णं भंते । जे भवि पुढवीकाइएस उववज्जिन्तए' हे भदन्त । अप्रकायिक जीव जो पृथिवीकायिकों में उत्पन्न होने के योग्य है 'से णं भंते ! केवइयकालट्ठिह
પૃથ્વિીકાયિકામાં ઉત્પન્ન थाय छे, तो है लगवन् 'किं सुहुम आउकाइयएगि दियतिरिक्त जोणिएहि तो उववज्ज'ति. ' बायर आकाइए गिदियतिरि०' ते શુ' સૂક્ષ્મ અષ્ઠાયિક એકેન્દ્રિય તિય ચ ચેાનિકમાંથી આવીને પૃથ્વીકાયિકપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે ? કે માદર અસૂકાયિક એકેન્દ્રિય તિયાઁચ ચેાનિકમાંથી આવીને पृथ्विप्रायि पाथी उत्पन्न थाय छे ? ' एवं चउक्कओ भेओ भाणियव्वो जहा पुढीकाइयाणं' या रीते पृथ्वीयिनी प्रेम सूक्ष्म महर पर्याप्त मने अयર્યાપ્ત આ ચાર ભેઢા અહિયાં કહેવા જોઇએ
वे गौतमस्वामी प्रभुने मे पूछे छे ! - 'आउक्काइरणं भंते ! जे भविए पुढवीकाइए उववज्जित्तए' हे भगवन् ? मयायिक व पृथ्विमायामां उत्पन्न थवाने योग्य छे, 'से णं भते ! केवइयका लट्ठिइएसु उववज्जेज्जा' डेटला
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫