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भगवतीसूत्रे
भूत् परिषत् नगरानिस्सृता धर्मोपदेशो भगवता कृतः, परिषत् प्रतिगता । तदनु त्रिविधया पर्युपासनया पर्युपासीनः पाञ्जलिपुटो गौतम इत्यादीनां पदानां ग्रहणं भवति इति। किमवादी ! तत्राह-'कइ ' इत्यादि। 'कइ गं भंते ! लेस्सागो पण्णताओ' कति खलु भदन्त ! लेश्या: प्रज्ञा ! भगवानाह'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'छल्ले सानो पनत्ताओ' षड्लेश्या: मज्ञप्त : प्रकारमेदमेव दर्शयति-तंजहा' इत्यादि । 'तं जहा' तद्यथा-'कण्हलेस्सा जहा पढमसए बिझ्यउद्देसए तहेव लेस्साविभागो अप्पाबहुग च' कृष्णलेश्या यथा भगवान् ने धर्म का उपदेश दिया, उसे सुनकर परिषद् विसर्जित हो गई। इसके बाद त्रिविध पर्युपासना से उपासना करते हुए गौतम ने दोनों हाथ जोड कर' इस पाठ का संग्रह हुआ है। 'गौतम ने भगवान् से क्या पूछा-सो अव प्रकट किया जाना है- 'कह णं भंते। लेस्साओ पपणनाओ-हे भदन्त ! लेश्याएँ कितनी कही गई हैं ? इसके उत्तर में प्रभु ने कहा-'गोयमा 'छल्लेस्सामोपण्णत्ताओ' हे गौतम ! लेश्याएँ छह कही गई हैं। 'तं जहां वे इस प्रकार से हैं-'कण्हलेसा जहा पढमसए विइ. पउद्देसए तहेय लेस्लाविभागो अप्पाबहुगं च' कृष्णलेश्या इत्यादि यहां प्रथमशतक के द्वितीय उद्देशे में कहे अनुसार लेश्याओं का विभाग
और इनका अल्पपहुत्व यावत् 'चउविहाणं देवाणं चउविहाणं देवीणं मीसगं अप्पाबहुगं त्ति' चार प्रकार के देवों के और चार प्रकार की देवियों के मिश्र अल्पबहुत्व तक कहना चाहिये । प्रथम शतक का वह બહાર નીકળી, ભગવાને તેઓને ધર્મદેશના સંભળાવી, ધર્મ દેશના સાંભળીને પરિષદ્ પિત પિતાના સ્થાન પર પાછી ગઈ તે પછી કાયિક, વાચિક, અને માનસિક એમ ત્રણે પ્રકારની પર્યું પાસનાથી સેવા કરતા એવા ગૌતમસ્વામીએ सन्न डायसने भगवानन सा प्रमाणे ५७यु-'कइ णं मंते ! लेस्साओ पण्णત્તાગોર હે ભગવદ્ વેશ્યાએ કેટલી કહેવામાં આવી છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभु ४ छे है-'छल्लेस्साओ पण्णचाओ' : गौतम ! अश्या । ७४२a छ. 'तं जहा' मा प्रमाले छ 'कण्हलेस्सा जहा पढमसए विइयाउद्देसए तहेव लेस्सा विभागो अप्पाबहुगं च' gey वश्या, विगैरे लिया ५॥ शताना olon દિશામાં કહ્યા પ્રમાણે લેસ્થાઓને વિભાગ અને તેનું અલપ બહુવ યાવત 'चजबिहाणं देवाणं चउविहाणं देवीण मीसगं अपाबहुगंत्ति' या२ जाना हैवान અને ચાર પ્રકારની દેવીઓના મિશ્ર અ૯૫ બહુત્વ સુધી કહેવું જોઈએ. પહેલા
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫