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मगवतीस्त्रे एषैव-अच्युतदेववक्तव्यता ज्ञातव्येति। अच्युतदेवापेक्षया संहनने वैलक्षण्यं तदर्शयति-'नवरं इत्यादि । 'नवरं दो संघयणा' नवरं द्वे संहनने-वज्रऋषमनाराच-ऋषभनाराचरूपे । अच्युतदेवेषु संहननत्रयवन्त उत्पद्यन्ते इह तु प्राथमिक संहननद्वयवन्त एव उत्पद्यन्ते इति-वैलक्षण्यमिति 'ठिई संवेदं च जाणेना' ग्रेवेयकदेवानां स्थिति संवेधं च भिन्नरूपेग जानीयादिति ९ । ___अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'गेवेज्जगदेवा ण भंते ! कोहितो उववज्जति' हे भदन्त ! ग्रैवेयक देवों में किस गति से आये हुए जीव उत्पन्न होते हैं ? अर्थात् किस गति के जीव अवेयकदेवों के रूप में उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'एसचेव वत्तव्वया' हे गौतम ! जैसी वक्तव्यता अच्युतदेव प्रकरण में कही गई है वही वक्तव्यता यहां पर भी कहनी चाहिये। परन्तु अच्युनदेव की अपेक्षा संहनन में जो विलक्षणता है वह 'नवरं दो संबयणा' इस सूत्रपाठ से प्रकट की गई है। इसके द्वारा यह समझाया गया है कि यहां पर वज्रऋषभनागच संहनन और ऋषभनाराच संहनन ये दो संहनन होते हैं पर अच्युतदेवों में तीन संहननवाले उत्पन्न होते हैं और यहां केवल दो संहननवाले ही उत्पन्न होते हैं । इस प्रकार से अच्युतदेव प्रकरण की अपेक्षा इस प्रकरण में भिन्नता है 'ठिई संवेधं च जाणेज्जा' इसी प्रकार से ग्रैवेयकदेवों की स्थिति और कायसंवेध भी भिन्न २ है।
ने गौतमस्वामी प्रसुन मे पूछे छ -'गेवेज्जगदेवा गं भंते ! कमोहितो उपवज्जति' सावन हवामा गतिमांथी मावा । उत्पन्न थाय छ १ मा प्रशन उत्तरमा प्रमुछे -'एस चेव वत्तव्यया' હે ગૌતમ ! જે પ્રમાણેનું કથન અમ્રુત દેવના પ્રકરણમાં કહેવામાં આવ્યું છે, એજ પ્રમાણેનું કથન અહિયાં પણ કહેવું જોઈએ. પરંતુ અમ્રુત દેવ सधी थन ४२di सनन द्वारमा विलक्षण पाशु भा छे. ते 'नवर दो संघयणा' मा सूत्रपाथी प्रगट रेस छे मा सूत्राथी से समय छ કે-અહિયાં ષમનારાચ સહનન અને ઋષભનારાચ સંહનન એ બે સંહ. ન હોય છે. પરંતુ અમ્રુત દેવોમાં ત્રણ સંહનનવાળી ઉત્પન્ન થાય છે. અને અહિયાં કેવળ બે સંહનનવાળા જ ઉત્પન્ન થાય છે. આ રીતે અચુત हवना ४२६ना ४थन ४२तां ॥ ५२मा मावे छ. 'ठिई संवेह' च जाणेज्जा' मा शत वय वोनी स्थिति भने यस व५ नुहा छ.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫