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भगवतीसूत्रे सेण वि तिपलि भोवमट्टिाएमु उज्जेज्जा' उत्कर्षेणाऽपि त्रिपल्योपस्थितिकेषु देवेषुत्पद्येत, तत्र च 'एस चेव वत्तव्यया' एप-उपरिप्रदर्शितैत्र वक्तव्यता वक्तव्या। किन्तु स्थित्यादौ वैलक्षण्य भवति तदेव दर्शयति-नारं' इत्यादि । 'नवरं ठिई जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाई' नवरम्-केवलं स्थितिजघन्येन त्रीणि पल्योपमानि 'उक्को से गा वि तिन्नि पलिओनमाई' उत्कर्षेणाऽपि त्रीणि पल्पोपमानि, जघन्योत्कृष्टाभ्यां विपल्योपमात्मिका उतीयगमे स्थितिभरणीयर्थः । ‘से पं त हेच' शेष तथैव 'कलादेसेणं जहन्नेणं छप्पलिवाई कालादेशेन जघन्येन पटपल्योपमानि 'उकोसेण वि छप्पलिओवमाइं 'उत्कर्षणाऽपि षटू पलयोपमानि, जघन्यो स्कृष्टाभ्यां कालादेशेन कायसंवेधः षट् पल्योपमात्मको भवतीत्यर्थः 'एवइयं.' लोक में उत्पन्न होता है तथा 'उक्कोसेण वि तिपलि भोवमहिहएसु उववज्जेज्जा' उत्कृष्ट से भी वह तीन पल्योपम की स्थिति वाले सौधर्म: देवलोक में उत्पन्न होता है 'एसचेव वत्तव्यया' इस सम्बन्ध में ओर अवशिष्ट द्वारों की वक्तव्यता ऊपर में दिखाये गये प्रथम गम को वक्तव्यता जैसी ही है। किन्तु यहां स्थिति आदि में जो भिन्नता है वह इस प्रकार से है-'नवरं ठिई जहन्नेणं तिनि पलि ओषमाइं, उक्कोसेण वि तिन्नि पलिओवमाई' यहां स्थिति जघन्य से तीन पल्योपम की है और उत्कृष्ट से भी वह तीन पल्योपम की है । 'सेसं तहेव' बाकी का ओर सब कथन पूर्वोक्त प्रथम गम के जैसा ही है। 'कालादेखणं जहन्नेणं छपलि. ओवमाई' यहां कायसंवेध जघन्य से काल की अपेक्षा ६ छह पल्योपम का है और उत्कृष्ट से भी वह ६ छह पल्योषम का है अर्थात् कायसंवेध यहां जघन्य और उत्कृष्ट से छह पल्पोपम का होता है 'एवइयं०' इस प्रकार याय छे. तथा 'उक्कोसेण वि तिपलिओवमटिइरसु उववज्जेज्जा' ष्टयी ५५ तत्र पस्योपमनी स्थितिमा सौधर्म वाम 4-1 थाय छे. 'एस चेत्र वत्तव्वया' मा समान द्वारा सी ४थन ०५२ मतावामा भावत પહેલા ગામના કથન પ્રમાણે જ છે. પરંતુ અહિયાં સ્થિતિ વિગેરેના કથનમાં જે
हा छ त मारीत छ.-'नवरं ठिई जहन्नेणं तिन्नि पलिओवमाई उक्कोसेणं वि तिन्नि पलिओवमाई' सडियां स्थिति न्यथी ३ पक्ष्या५मनी छे, भने यी ५९५ ते प ५६यो५मनी छे, 'सेसं तहेव' मानुं भी तमाम स्थान पर समान पहे। आम प्रमाणे ४ छे. 'काल देसेणं जहन्नेणं छ पलिओवमाई" मडियां यस वध धन्यथा नी अपेक्षा ૬ છ પલ્યોપમન છે. અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ તે ૬ છ પલ્યોપમને છે. અર્થાત કાયસંવેધ અહિયાં જઘન્ય અને ઉત્કૃષ્ટથી છ પલ્યોપમને હોય છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫