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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२१ सू०१ मनुष्याणामुत्पत्तिनिरूपणम्
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मादिद्वारजातं कथितं तथैव पालकाप्रमाधूमम भापङ्कममात मम मानारकपर्यन्तमकरणेष्वपि परिमाणादिद्वारजातं विवेचनीयमिति प्रथमगमादारभ्य नगमान्तेषु नवस्वपि ममकेषु सर्व ज्ञातव्यमिति ९ । अथ तिर्यग्योनिकेभ्यो मनुष्यत्वादयत्राह 'जइ विरिक्ख जोणिरहितो' इत्यादि । 'जर तिरिक्खजोणिएहिंतो उति' यदि विर्यग्योनिकेभ्यो मनुष्या उत्पद्यन्ते तदा 'कि एर्गिदियतिरिक्खजोणिएर्हितो उवज्जंति' किमेकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकेभ्य आगत्य मनुष्या उत्पयन्ते 'जात्र पंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उनवज्जंति' यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य आगत्योत्पयन्ते, अत्र या त्पदेन द्वीन्द्रियेभ्य आगत्य अथवा रत्नप्रभा पृथिवी के नैरयिक प्रकरण में परिमाण आदि द्वारों का कथन किया गया है उसी प्रकार से बालुकाम मा धूमप्र मा, पङ्कनमा, एवं तम प्रभा तक के नारक प्रकरण में भी परिमाण आदि द्वारों का विवेचन कर लेना चाहिये । इस प्रकार से प्रथम गम से लेकर नौवें गम तक के मौकों में सर्व कथन यहां जानना चाहिये ।
अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं- 'जड़ तिरिक्ख जोणिरहितो उबवज्जति' हे भदन्त ! यदि तिर्यग्योनिकों से आकरके मनुष्य उत्पन्न होते हैं तो 'किमेगिंदियतिरिक्व तोणिएदितो ववज्नंति' क्या चे मनुष्य एकेन्द्रिय तिर्यग्योनिकों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् 'पंचिदिय तिरिक्ख जोगिएहिंतो उबवज्जति' पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योमिकों से आकर के वे धनुष्य उत्पन्न होते हैं ? यहां यावत् शब्द से ऐसा पाठ ग्रहण हुआ है कि क्या वे दीन्द्रियों से आकरके अथवा પરિમાણુ વિગેરે દ્વારાના સંબંધનું કથન કરેલ છે. તેજ રીતે વાલુકાપ્રભા, ધૂમપ્રભા, પકપ્રભા, અને તમાપક્ષા સુધીના નાકાના પ્રકરણમાં પશુ પરિ માણુ વિગેરે દ્વારાના સબધી વિવેચન સમજી લેવું. આ રીતે પહેલા ગમથી આરભીને નવમા ગમ સુધીના નવે ગમનુ તમામ કથન અહિયાં સમજી લેવું.
हवे गौतमस्वामी प्रभुने शोवु पूछे छे हैं— 'जह तिरिकखजोणिएहितो उववज्जति' हे भगवन् ले तिर्यययोनिमांथी आवीने मनुष्य उत्यन्न थाय छे, तो 'किमेगि 'दियतिरिक्खजोणिएडितो' शुं ते मनुष्यो खेड छन्द्रियवाजा तिर्यग्य योनिमांथी भावीने उत्पन्न थाय छे ? अथवा यावत् 'पंचि दियतिरिक्खजोणिहितो उववज्जंति' पंचेन्द्रियतियथ योनि अभांथी भावीने મનુષ્યેામાં ઉત્પન્ન થાય છે ? . અહિયાં યાવત્ પદ્મથી નીચે પ્રમાણેના પાઠ ગ્રહણુ કરાયેા છે. તેએ એ ઇંદ્રિયાવાળા તિચ ચેનિકામાંથી આવીને,
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫