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भगवतीसूत्रे 'एवं जाव थणियकुमारा' एवं नागकुमारप्रकरण देव यावत् स्तनितकुमारपर्यन्त मपि उत्पादादिकं सर्वमवगन्तव्यम् । अत्र यावत्पदेन सुपर्णकुमारादीनां सप्त कुमाराणां ग्रहणं भवतीति नवमान्ताः नवगमाः ९ । 'जइ वाणमंतरेहितो उववज्जति' यदि हे भदन्त ! ते पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिका वानव्यन्तरेभ्य आगत्य उत्पधन्ते तदा -'किं पिसायवाणमंतरेहितो उववज्जति' किं पिशाचवानव्यन्तरेभ्य आगत्यो. स्पधन्ते पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु इति प्रश्नः । उत्तरमाह-तहेव' तथैव यथा असुरकुमारादिप्रकरणं परिमाणादिविषये कथितं तथैव पिशाचवानव्यन्तरेऽपि सर्व वक्तव्यम् कियत्पर्यन्तमित्याह-'जाव' इत्यादि । 'जाव वाणमंतरे णं भंते' मारों की स्थिति और संवेध की अपेक्षा भिन्न है। 'एवं जाव धणिय. कुमारा' नागकुमार के प्रकरण के जैसे ही यावत् स्तनितकुमार तक उत्पाद आदि सब कथन जानना चाहिए ! यहां यावत् शब्द से सुवर्ण कुमार आदि सात कुमारों का ग्रहण हुआ है। इस प्रकार से यहां नव मान्त नव गम है? ___ अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-'जइ वाणमंतरेहिंतो उवव. ज्जति' हे भदन्त ! यदि संज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव वानव्यन्तरों से आकरके उत्पन्न होते हैं कि पिसायवाणमंतरेहितो उपवनंति' क्या वे पिशाच नामक वानव्यन्तरों से आकरके उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'तहेव' हे गौतम ! जिस प्रकार से असुर कुमार आदि के प्रकरण में परिमाण आदि द्वारों का कथन किया था वही कथन यहां पिशाच वानव्यन्तरों में भी करना चाहिये 'जाव' "एवं जाव थणियकुमारा नागभारना ५२मा ह्या प्रमाणे ४ यावत् स्तनि. તકુમાર સુધી ઉત્પાત વિગેરે તમામ કથન સમજવું અહિયાં યાવત શબદથી સુવર્ણકુમાર વિગેરે સાતકુમારે ગ્રહણ કરાયા છે. આ રીતે અહિયાં ન ગમે समलवा.
डवे गीतमस्वामी प्रसुन मे पूछे छे है-'जइ वाणमंतरेहितो स्वरज्जजति' उपन् ने सभी पयन्द्रियतिय य योनिवाण १ पान. व्यतर हेवामाथी मावीर अपन्न थाय छ, तो 'कि पिसाय वाणमंतरेहितो उववज्जति' शुतमा पिशाय नामना पान०यत२ हेवामाथी मावीन पन्न थाय छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ -तहेव गौतम ! २ प्रमाण અસુરકુમાર વિગેરેના પ્રકરણમાં પરિમાણ વિગેરે દ્વારેનું કથન કરવામાં આવ્યું છે એજ રીતે અહિંયાં પણ પરિમાણ વિગેરે દ્વારોના સંબંધનું કથન
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫