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भगवतीसत्र उकोसेणं तिन्नि पलिभोवमाई पुनकोडीपुहुत्तमभहियाई उत्कर्षेण त्रीणि परयोपमानि पूर्वकोटिपृथक्त्वाभ्यधिकानि, एतावत्कालं मनुष्यगति तिर्यग्गति च सेवेत, तथा-एतावत्कालपर्यन्तमेव मनुष्यगतौ तिर्यग्गतौ च गमनागमने कुर्यादिति प्रथमो गमः १। द्वितीयगमे-'सो चेव जहन्नकालटिइएमु उववन्नो' स एवसंझिमनुष्य एव यदि जघन्यकालस्थितिकपञ्चेन्द्रियनिर्यग्योनिकेषु उत्पन्नो भवेत्तदा-'एस चेव वत्तव्यया' एपेव-प्रथमगमपदर्शितैव वक्तव्यता सर्वाऽपि वक्तव्या, 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतो मुहुत्ता' नवरम्-केवलमेतावदेव वैलक्षण्यम् यत् कायसंवेधस्तु 'कालादेसेणे जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता' कालादेशेन पलिभोवमाइं पुषकोडीपुहुत्तम महियाई' उस्कृष्ट से वह पूर्वकोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम का है। इतने काल तक वह संज्ञी मनुष्यगति का और तिर्यग्गति का सेवन करता है। तथा इतने ही काल तक वह उसमें गमनागमन करता है। ऐसा यह प्रथम गम है। द्वितीय गम में-'सो चेव जहन्न कालहिएसु उववन्नो' ऐसा पाठ है। इसके अनुसार वही संझी मनुष्य यदि जघन्य काल की स्थिति वाले पश्चन्द्रिय तिर्यग्योनिको में उत्पन्न होने के योग्य है । तो वहां पर भी 'एस चेव वत्तम्वया' यही प्रथम गम में कही गई वक्तव्यता कहनी चाहिये । परन्तु इस गम की वक्तव्यता में जो प्रथम गम की वक्तव्यता से अन्तर है उसे सूत्रकार मे 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दे। अंतोमुहुत्ता' इस सूत्र द्वारा प्रकट किया है। इससे उन्होंने यह समझाया है कि इस द्वितीय गम में कायसंवेध
. सन 'उक्कोसेणं तिन्नि पलि भोवमाइं पुव्वकोडि पुहुत्त प्रब्भहियाई' पृष्टथी તે પ્રવકટિ પ્રથકૃત્વ અધિક ત્રણ પલ્યોપમને છે. આટલા કાળ સુધી તે સંસી મનુષ્ય ગતિનું અને તિર્યંચ ગતિનું સેવન કરે છે. અને એટલા જ કાળ સુધી તે તેમાં ગમનાગમન કરે છે. એ રીતે આ પહેલે ગમ કહ્યો છે. ૧ હવે બીજા ગમ સંબંધી કથન કરવામાં આવે છે –
'सो चेव जहन्नकालदिइसु उववन्नो' २॥ सूत्र५i xn प्रमाणे मे સંસી મનુષ્ય જે જઘન્ય કાળની સ્થિતિવાળી સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયતિય"ચ એનિ
wi Bua यवान योग्य छे. तो ते स मां ५५ 'एस चेव वत्तव्यया' આ પહેલા ગામમાં કહ્યા પ્રમાણેનું કથન કહેવું જોઈએ. પરંતુ પહેલા ગમ १२di At भी गमन थनमा २ हा छ तेने सूत्र 'नवर 'कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुत्ता' मा सूत्र५:४थी प्रट रेस छ. मा સત્રપાઠથી તેઓએ એ સમજાવ્યું છે કે આ બીજા ગમમાં કાયસંવેધ કાળની
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૫