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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० सू०३ तिर्यग्भ्यः ति जीवोत्पत्यादिकम् २७३ रधिका इति चतुर्थों गमः ४ । 'सो चेव जहन्नकालटिइएसु उववन्नो' स एष जघन्यकालस्थितिकोऽसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकजीव एव यदि जघन्यकालस्थितिकपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उत्पन्नो भवेत् तदा-'एस चेव वक्तव्यया' एषैव -चतुर्थगम सहशी एव वक्तव्यता भणिकच्या केवलं चतुर्थगमापेक्षया पञ्चमेषु गमेषु यद्वैलक्षण्यं तदर्शयति--'नवरं' इत्यादि । 'नवरं काळादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहुना' नवरं कालादेशेन जघन्येन दे अन्तर्मुहूर्ते 'उक्कोसेणं अह अंतो. मुहुत्ता' उत्कर्षेणाष्टौ अन्तर्मुहूतानि, 'एवइयं०' एतावन्तं कालं यावत्कुर्यात् एतावत्कालपर्यन्तम् उभयगति सेवेत तथा एतावत्कालपर्यतमेव उभयगतौ गम. नागमने कुर्यादिति पञ्चमो गमः ५। 'सो चेव उक्कोसकालट्ठिइएसु उववनो' स अपेक्षा वह जघन्य से दो अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से चार अन्त मुहर्स अधिक चार पूर्वकोटि का है। इस प्रकार से यह ४ गम है
पांचवां गम इस प्रकार है-'सो चेव जहन्न कालटिइएसु उववन्नो' यदि वही जघन्यकाल की स्थितिवाला असंज्ञी पश्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव जघन्य काल की स्थितिवाले संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है तो वहां पर भी 'एस चेव वत्तव्यया' यही चौथे गम जैसी वक्त व्यता कह लेनी चाहिये। परन्तु चतुर्थ गम की वक्तव्यता से पांचवें गमकी वक्तव्यता में जो भिन्नता है वह 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेणं दो अंतोमुहत्ता, उक्कोसेणं अट्ठ अंतोमुहत्ता' इस प्रकार से है कि यहां कायसंवेध काल की अपेक्षा जघन्य से दो अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट से वह
आठ अन्तर्मुहर्त का है। एवइयं कालं.' इस प्रकार से वह जीव इतने काल तक उभय गति का सेवन करता है और इतने ही काल तक છે, અને ઉત્કૃષ્ટથી ચાર અંતર્મુહૂર્ત અધિક ચાર પૂર્વ કોટિનો છે. આ રીતે આ ચેાથે ગમ કહ્યો છે. ૪
- હવે પાંચમા ગમનું કથન કરવામાં આવે છે – ___ 'सो चेव जहन्न कालद्विइएसु उववन्नो' ने २४ २५सशी पयन्द्रिय તિયચનિવાળો જીવ જઘન્યકાળની સ્થિતિવાળા સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયતિર્યચ. ये निवासमा उत्पन्न याय छे, ते ते समयमा पY 'एस चेद वतव्वया' આ ચેથા ગામના કથન પ્રમાણેનું કથન કરી લેવું. પરંતુ ચેથા ગામના કથન ४२di viयमा गभाना थनमा छ छे. ते 'नवरं कालादेसेणं जहन्नेण दो मतोमुहत्ता, उक्कोसेणं अट्र अंतोमु हुत्ता' ते मे प्रमाणेनु मलियां કાયસંવેધ કાળની અપેક્ષાથી જઘન્યથી બે અંતમુહૂતને છે. અને ઉષ્પષ્ટથી a 18 भतभुइतना छ, 'एवइयं कालं.' 2 रीते ते ०१ आदता ॥
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૫